2020 एप्रिल

कोरोना :लघुकथाये – महेश राजा

सा हि त्या क्ष र 

(कोरोनाच्या पार्श्वभूमीवर छत्तीसगढ मधील आमचे मित्र श्री.महेश राजा यांनी या लघुकथा लिहिल्या आहेत.लघुकथा हा हिंदीत अतिशय प्रतिष्ठीत समाजाला जाणारा साहित्य प्रकार आहे.-संपादक,साहित्याक्षर.)

1/जीत जायेंगे हम

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      मनोहर लाल जी के घर के सामने एम्बुलेंस रूकी।आसपास के घरों की खिड़कियां और झरोखे खुल गये। गाड़ी से मनोहरलाल जी उतरे साथ में डाक्टर और स्टाफ थे।सभी ने उनका अभिवादन किया।कमला देवी ने दरवाजा खोला।मनोहरलाल जी को पूर्ण स्वस्थ देखकर उनकी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बहने लगी।एक मौन और धन्यवाद भरी आँखों से कमलाजी ने हास्पिटल स्टाफ को नवाजा।मनोहरलाल जी ने हाथ जोड़कर सबको नमस्कार किया।एम्बुलेंस आगे बढ़गयी।आसपास के लोगों ने अपने अपने घरों से तालियां बजाकर उनका स्वागत किया।   दरअसल आज से कुछ दिनों पहले मनोहर लाल जी महीने का सामान लेकर आटो रिक्शा से उतरे।भीतर पहुंच कर पानी पीया और आराम करने लगे।शाम होते ही उन्हें बुखार जैसा महसूस हुआ और थोड़ी खांसी भी लगने लगी।   कमलाजी को बताने पर उन्होंने तुलसी का काढा़ और अदरक वाली चाय पिलायी।रात को खिचड़ी खाकर सो गये।   मनोहरलाल जी अपनी पत्नी कमलादेवी के साथ एक छोटे से शहर में  रहते थे।दोनों बेटे पत्नी व एक पोते सहित अलग अलग शहरों में अपने काम के सिलसिले में रहते।।साल में दोतीन बार वे आजाते।दो तीन बार मनोहरजी चले जाते।शरीर स्वस्थ था।हाँ उमर हो गयी थी।पर,इस छोटी सी जगह का मोह छूट नहीं रहा था।    अगली सुबह उन्हें साँस लेने में तकलीफ़ हुयी तो जरा भी नहीं धबराये टीवी पर बताये ईमरजैंसी नंबर डायल किया।अपने को अलग कमरें में बंद कर लिया।उससे पहले कमला देवी को ढ़ाढ़स दी।समझाया।दरअसल महामारी ने समूचे विश्व को परेशान कर दिया था। एम्स से डाक्टर और एम्बुलेंस आयी उन्हें अपने साथ ले गयी।   और आज वे अपने आत्मविश्वास और संबल की वजह से सही सलामत लौट आये थे।  पत्नी कमला को रोते देखकर हँसे,-“अरी पगली,इतनी जल्दी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाले और अभी तो तुम्हें नाथद्वारा भी तो ले जाना है,प्रभु के दर्शन को।”कमलाजी हँस पड़ी।   मनोहर लाल जी समझदार थे।वे अब भी सोशल डिस्टेंशन का पालन कर रहे थे।खानपान का भी पूर्ण ख्याल रख रहे थे।आखिर जिंदगी की जंग जीत कर आये थे।अस्पताल में भी डाक्टर्स ने उनकी हिम्मत और सहयोग की तारीफ़ की थी।  बेटे बहू और पोते के फोन आ रहे थे।सब उनकी कुशलता जानने को ईच्छुक थे।पोता कह रहा था दादा,आपकी बड़ी याद आ रही थी,पर ट्रेन और हवाई यात्राऐंबंद है।हम सब घरों में बंद है। उन्होंने ने बताया ,-“बेटा इस तरह की बीमारी, या महामारी से ड़रने की बिल्कुल जरूरत नहीं ,सिर्फ़ थोड़ी सी सावधानी और समझदारी की जरूरत है।सोशल डिस्टेंशन बनाये रखना जरुरी है,और घर पर ही रहना है।प्रशासन हमारी पूरी मदद कर रहा है।वो फिर  हँस कर बोले,-“बेटा कोई बात नहीं।और हाँ चिंता मत करना।अभी तो मुझे  तुम्हारे विवाह में शामिल होना है”।और वे ठहाके लगा कर हँस रहे थे।  तभी उन्हें फोन पर सूचना मिली कि थोड़ी देर बाद माननीय मुख्यमंत्री महोदय उनसे बात करने वाले हैं।   वे पूर्ण उत्साह के साथ पत्नी के साथ मसाले वाली चाय पी रहे थे।   टीवी पर सभी चैनल्स पर नीचे वाली पट्टी में उनके अस्पताल से सकुशल होने की खबर दिखायी जा रही थी।

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2/स्वाभिमान का प्रश्न

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     इस महामारी के चलते शासन ने एक अहम फैसला लिया कि राशन या अन्य साम्रगी बाँटते समय फोटो या विडियोग्राफी करना मना है।   एक ने सुबह-सुबह अपने साथी को फोन किया-“भाई, आज कितने बजे चलना है,नहर पारा।खाद्य सामग्री और मास्क वितरित करने ?”    दूसरे ने ऊनींदे स्वर में जवाब दिया-“नहीं यार,आज नहीं।आज टोटल लॉकडाउन का पालन करना है।घर पर ही रहना है।सुरक्षित रहना है।”    दरअसल हो यह रहा था कि कुछ ही जगह पैकेट बँट पाते,लोगों का शेष ध्यान फोटो खिंचवाने में ही रहता।उन्हें यह निषेध नागवार लगा।कुछ हद तक यह सही था कि विडियोग्राफी आदि माध्यम से यह जानकारी हो जाती कि मदद कहाँ तक पहुंँची।पर इसकी अति चिंता का विषय थी।   फिर यह भी था कि गरीबों की अपनी ईज्जत का भी प्रश्न था।परिस्थिति याँ विपरीत थी,तो वे बाहर कमाने नहीं जा पा रहे थे।अधिक तर स्वाभिमानी ही थे।स्वयं कमाकर अपना और परिवार का पेट पालते।वे यह कदापि नहीं चाहेंगे कि उनकी यह विवशता सार्वजनिक हो।   अब तो सरकार ने यह निर्णय  भी ले लिया  है कि जरूरत मंदों के बीच अब खाद्य सामग्री का वितरण जिला प्रशासन करेगा।      इन बातों से  स्वाभिमान पर चोट भी नहीं पहुँचेगी,मदद भी हो जायेगी  और यह विकट समय भी गुजर जायेगा।

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3/सावधानी जरूरी

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आज का आखरी टीकाकरण केस भी निपट गया था।रिपोर्ट भी तैयार हो गयी थी।शकुनजी ने हाथ चटखाये।शाम होने को थी सुदूर गाँव में ज्यादा देर रूकना सुरक्षित न था।    उन्होंने अपनी बैग समेटी।चेहरे पर मास्क लगाया और स्कूटी स्टार्ट की।  शकुनजी  स्वास्थय विभाग से संबंधित थी।साथ ही समाज सेविका भी।बहुत मेहनती थी।सभी उन्हें दीदी कह कर पुकारते।वे हर किसी की मदद करने को हर समय तैयार रहती।   जैसे ही वे एन.एम.डी.सी. कालोनी पहुंची, देखा सामने से दो महिलाएं गपशप करती टहल रही थी।उन्होंने स्कूटी रोक कर पूछा,-“आप लोग,इस समय.इस तरह…?    एक महिला ने जवाब दिया,-“दिन भर घर में रह कर बोर हो रही थी,तो ताजा हवा खाने सैर पर निकल पड़ी।”     शकुन जी ने कहा,-“वह सब तो ठीक है मैड़म .पर बिना मास्क या दुपट्टा बाँधे…?जानते नहीं हालात कितने खराब है।”  दूसरी बोली-“पर,यहाँ तो कोई समस्या नहीं है।तो फिर मास्क क्यों?”   शकुन जी ने उन्हें समझाया,-“मैडम ये कीटाणु बता कर नहीं आते।ईश्वर न करे,कब, किसको संक्रमित कर दें।इसलिए सावधानी जरूरी है।कहते है न..सावधानी हटी..दुर्घटना घटी।”   फिर उन्हों ने अपनी बैग से दो मास्क निकाल कर दिये।  दोनों ने तुरंत वे मास्क लगाये।अपने घर जाने लगी।शकुनजी ने उन्हें विदा करते हुए संदेश दिया-“घर पर रहिये.सुरक्षित रहिये।”

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4/अन्नपूर्णा

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   अरूण कुमार जी एक बहुत बडी़ कंपनी में आफिसर थे।वे हमेंशा दौरे पर ही रहते।कार,ड्राइवर और वे।उनके जीवन का अधिक तर समय दौरे में ही बीता।कभी रेस्ट हाउस में रूकते,कभी किसी बडी़ सी होटल में।भोजन अक्सर बाहर होता।    सप्ताह दो सप्ताह में घर पर रहते तो भी भोजन  बाहर ही होता।आदत थी।   उनकी श्रीमति सुधाजी कुशल गृहिणी थी।एक प्यारा सा बच्चा भी था। उन्होंने पति की इन आदतों से समझौता कर लिया था,कभी कोई शिकायत न करती।    एकाएक इस महामारी ने आ  घेरा।संपूर्ण लाकडाउन हुआ।अरूण जी को भी घर पर रह कर काम करना पड़ा।   एक दो दिन तो बड़े बूरे बीते।घर पर रहने की आदत जो न थी।सुधाजी और बच्चे को बड़ा भला लगा।सुधाजी रोज नये नाश्ते और भोजन बनाती।  अरूण जी मुँह बिगाड़ते।खाते और कार्य करते रहते।इक्कीस दिन का लाकडाउन  फिर बीस दिन और बढ़ाया गया।    अब धीरे धीरे उन्हें घर का भोजन भाने लगा।बहुत प्यार से खाने लगे।बीच में तारीफ भी करते।सुधाजी मुस्कुरा देती।   घर पर रह कर अरूण जी ने महसूस किया एक गृहिणी को कितना काम करना होता है।फिर भी बिना शिकायत वे हँसते हँसते करती रहती है।और पुरूष कभी इस बात की कदर नहीं करते!    एक रात , जब सुधाजी उनके लिये गरम दूध लेकर आयी।पास बैठाया।गले लगाकर माफी मांगी,कहा-“,प्रिये ,आज तक मैंने तुम्हारी कद्र ही नहीं की।सिर्फ़ अपने काम में जुटा रहा।परंतु पिछले दिनों मैंने महसूस किया कि नारी क्या होती है?।उसके बिना पुरूष अधूरा होता है।नारी में कितनी शक्ति होती है।वे अपनी घर गृहस्थी को सजाने,सँवारनें में अपना जीवन लगा देती है।”    -“इन दिनों मैंने घर पर रह कर तुम्हारे हाथों बने व्यंजनों का स्वाद चखा तो महसूस हुआ कि पिछले बरसों में मैंने क्या कुछ खो दिया है।तुम साक्षात अन्नपूर्णा हो।तुम्हारे हाथों में तो जादू है।अब इस बात को मैं कभी नहीं भूलूंगा।” -”  इस अवसर पर एक वादा करता हूँ, जैसे ही हालात ठीक होंगे,मैं छुट्टी ले लूंगा।हम तीनों एक साथ  कहीं  एकांत मेंरहेंगे।पिछले दिनों की भूल का मुझे प्रायश्चित  जोकरना है।”सुधा जी  बस चुपचाप मुस्कुराती रही।।

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5/मानवता अभी जीवित है

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    इन दिनों घर पर ही रहना हो रहा है।साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े रहने के कारण देश विदेश की खबरें क ई माध्यमों से सुनने और पढ़ने मिल रही है।    इन दिनों हम सब एक वैश्विक महामारी के प्रकोप से जूझ रहे.है।हर रोज एक नयी खबर,एक नया हादसा।संपूर्ण लाकडाउन है तो बाहर न निकल कर घर पर ही लेखन -पठन में समय गुजर रहा है।   ऐसे में कुछ अच्छी बातें ध्यान में आयी है कि हमारे डाक्टर्स,पुलिसकर्मी,पैरामेडिकल स्टाफ और पत्रकार  और अन्य योद्घा अपनी जान की परवाह किये बिना देश सेवामें जी जान से जुटे है।हालांकि उन्हें बहुत सारी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है।क्योंकि यह लड़ाई हमारी अपने आप से ही है।परंतु बिना कोई हिचक वे अपने कार्य में मशगूल है।    अनेक घटनाएं सामने आयी।क ई डाक्टर और पुलिस मेन को जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ा।लोग अपनी जान की कीमत ही नहीं समझ रहे।उल्टे प्रशासन के काम में दखल दे रहे है।आये दिन गलत हरकत कर हमें शर्मिंदा होने को मजबूर कर रहे है।     ऐसे में अपने परिवार को छोड़कर हर कोई अपनी ड्यूटी निभा रहा है।    खास कर पुलिस विभाग में ।महिला पुलिस अपने छोटे छोटे बच्चों को साथ लेकर ड्यूटी कर रहे है।एक महिला पुलिस अधिकारी ने अपने विवाह  की तिथि आगे बढ़ा दी।रायपुर में एक डीएसपी अधिकारी गर्भवती होने के बावजूद अपना कर्तव्य पूर्ण मुस्तैदी से निभा रही है।उनका एक ही आग्रह है,आप सब घरों में रह कर हमारा साथ दिजिये ,हम आपकी पूर्ण सुरक्षा का वादा करते है।   हमें इन सब पर गर्व है,साथ ही जनता से शिकायत भी कि वे सोशल डिस्टेंशन का पालन नहीं कर रहे।अनावश्यक घूम रहे है।न मास्क लगा रहे है न ही सैनेटाईजर या साबुन से अपने हाथ साफ कर रहे है कितने दुःख की बात है कि हमारे देश के कर्णधार, सामाजिक कार्य कर्ता सबकी मदद को आगे आ रहे है और हम अपना छोटा सा कर्तव्य जो हमारी सुरक्षा से जुड़ा है,नहीं निभा पा रहे है।   ऐसे में एक समाजसेवी मित्र का फोन आया कि क्या समाज,क्या हम इन पुलिस अधिकारी के बच्चों को अपने पास नहीं रख सकते।प्रश्न उचित था,पर ऐसे कठिन समय में विश्वास की बात भी आड़े आ रही है।    सच्चाई यही है कि हम सबको मिलजुल कर इस विपदा का सामना करना है और ध्यान रखना है कि एक भी व्यक्ति भूखा न सोये।इतना तो हम सब कर सकते है।   साथ ही हमारे इन योद्धाओं को हम दिल से नमन करते है।इनकी मानवता,इनके द्बारा की गयी निस्वार्थ सेवा की   बातआने वाली पीढ़ी युगों युगों तक याद रखेगी।

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महेश राजा ,महासमुंद ,छत्तीसगढ ,संपर्क : ९४२५२०१५४४

परिचय : महेश राजा

जन्म : 26/2/1958,गुजरात।

शिक्षाःबीएससी.एम एःमनोविज्ञान।

एम ए हिंदी।जनसंपर्क अधिकारी :बीएस एन एलःरिटायर्ड।1983 से पहले कहानिया,फिर लघुकथा एवम लघुव्यंग।दो पुस्तकें प्रकाशित :बगुला भगत एवम नमस्कार प्रजातंत्र।गुजराती, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम. उडिया एवम छत्तीसगढ़ी मे अनुदित।पचपन लघुकथा ए रविशंकर विश्वविद्यालय के शोधप्रबंध मे शामिल।कनाडा से वसुधा मे प्रकाशन।भारत की हर छोटी बडी पत्र पत्रिकाओं मे निरंतर लेखन।आकाशवाणी एवम दूरदर्शन से प्रसारण।

पताःवसँत.51.कालेज रोड.महासमुंद।छ.ग. 493445.मो.नं.9425201544

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