2024 Hindi kavita सप्टेंबर

अशोक कोतवाल की कवितायें

सा हि त्या क्ष र 

परिचय : अशोक कोतवाल मराठी के एक सुप्रतिष्ठित कवि है । मराठी साहित्य जगत के कई सम्मानों ने उन्हें नवाजा गया है । फिलहाल वे महाराष्ट्र के जलगांव में स्थित है । समकाल पर विपरित एवं गंभीर टिपण्णी करना, ये उनकी विशेषता है । प्रस्तुत है उनकी चंद कविताओं का संजय बोरुडे द्वारा हिंदी अनुवाद । मूल कवि से संपर्क : 98501 17539

१. खोज


पूरे शहर में
इश्तिहार चिपका दिया है
मेरे गुम होने का ।

सच्चाई ये है कि,
मैं गुम नहीं हुआ हूँ ,
बल्कि गुम किया गया हूँ
और ये बात कैसे कोई
समझ नहीं पा रहे हैं ?

सब लोग मुझे ढूंढ रहे हैं ।
लेकिन मैं तो कब का
खड़ा हूँ
मेरे इश्तिहार के सामने !

बेशक लोग देख रहे है,
इश्तिहार को,
बिना मेरी ओर देखे
और मैं ठहाके लगा रहा हूँ ।

इसका मतलब साफ है,
किसी को भी
इस तरह गायब करके
बिठाया जा सकता है
किसी इश्तिहार में ..
ये बात बिल्कुल
संभव सी हो गई है,
आजकल ।
*

२. रथ खींचने वाले लोग

क्या ये पसीने से तरबतर,
प्राणों की परवाह किये बिना
रथ खींचने वाले लोग
जानते भी हैं;
कि रथों में घोड़े लगे होते हैं?

भगवान है तो क्या हुआ,
क्या हमें जरूरी है
उसके घोड़े बनना ?
उस समय के घोड़े ही जानते हैं
कि कब किसने
सत्य पर या असत्य पर
विजय प्राप्त की है।

हालांकि रथ के घोड़ों के पास
दृष्टि कहां होती है ?
वे तो सीधी रेखा में चलते हैं,
और कोड़े की
फटकार तो तय ही है
जरा सी भी खिंकल निकालने पर…

यह जानते हुए
कि इतिहास घोड़ों का नहीं लिखा जाता,
लोग सदियों से रथ को
खींचते आ रहे हैं लोग
जब तक कि उनके मुँह से
झाग न निकल जाए।

शायद उन्हें घोडे बनना पसंद है… ।

*

३. ऐसे कैसे सो गये है कवि गण ?

कवि गण सो गये ?
उठाओ उन्हें ;
बजाओ नगाड़े, पिटो ढोल …

फिर भी नहीं जगे
तो लगा दो झापड़, काटो चिकोटी,
खींचो बाल उनके

सभी ओर जानलेवा हलाहल
और सर के पास
प्रकाश का जरासा टुकडा लेकर
आखिर वें सो कैसे सकते है ?

*

४. भीतर के दर्द को नींद नहीं आ रही है …

जब से मार दिया है ,
मेरे बिरादरी के
उस आदमी को ,
जो हमेशा सच ही
कहता रहा
अपने समकाल के बारे में ।

तब से मेरे भीतर के दर्द को
नींद नहीं आ रही है ;
और मैं मेरे बेजान हाथों से
सहला नहीं पा रहा हूँ उसे ।

पूरे आकाश में
सुनाई देते है प्रतिध्वनी ;
उसकी आवाज के
और काट दिये जा रही है ;
उसे सुनने की इच्छाओं को ।

घोड़े बेचकर सो रहे है लोग
अपनी सुरक्षा सर के पास रखकर
और मैं अस्वस्थ युग युग से
मेरे भीतर के दर्द को
अपनी गोद में लेकर ।

*

५. तकलीफ

आधी रात ढलने लगती है,
लेकिन लड़के को
बहुत गहरी और शांत
नींद नहीं आती है ।

मैं बार-बार जागता रहता हूं.

मेरी नींद खुलती रहती है बार बार
और लेटे लेटे ही
उसे देख लेता हूँ ,
गर्दन उठाकर ।

मुझसे देखा नहीं जाता,
लड़का हर दिन
बिस्तर पर औंधे मुंह लेटे हुए
मोबाइल फोन से
रत होते हुये ।

वह जवान है इतना
कि वो मेरी बातों को
आसानी उड़ा सकता है
और उसे अपने
भलाई बुराई की पहचान है ।

लेकिन मुझे
तकलीफ होती है
उसे इतनी रात गये जागता,
और हर सुबह देर से उठता
और पूरी तरह से अपने आप में ही डूबा रहता देखकर ।

*

६. बाबरी मस्जिद मामला

मुझे भी उत्सुकता थी…
‘राम’ और ‘रहीम’ की नहीं,
बल्कि कोर्ट के फैसले की .. ।

उस विवादास्पद जगह पर
राम ‘रहीम’ बनकर आये
या रहीम ‘राम’ बनकर
भला इससे मुझे क्या फर्क पड़ता है?

लेकिन इससे फर्क
उन लोगों को पड़ता है;
जिन्होंने राम-रहीम
साझा किया है ;
अपने अपने हिसाब से ।

कोई नहीं जानता था कि
बंटवारा राम-रहीम का नहीं

बल्कि जमीन का हुआ था,
लेकिन ये बंटवारा
‘राम-रहीम’ के
नाम पर ही हुआ था. ।

अब जमीन किसकी है?
आपकी ?मेरी ?
या ‘राम-रहीम’ वालों की?
जमीन तो तब भी थी और
आज भी है;
जब कोई
‘राम’ या ‘रहीम’ नहीं था… ।

७. मुक्ति

सभाओं और जुलूसों में
संस्कृति के नाम पर
पहनवा दी जाती है
आपको साडियाँ
और आप भी
बेहिचक पहनती हैं?

तुम्हारे पैर;
जो थे साडी में फँसे
और गजरे की खुशबू
क्या कभी थी तुम्हारी ?

क्यों आप इतनी
अभिभूत (प्रभावित) हो जाती हो?
कि कमर में ठूंसा पल्लू
बिलकुल नहीं उड़ता ।
फुगड़ी खेलते समय ।

एक सीधी रेखा में
चलनेवाली महिलाओं,
क्या आप हैं,
उत्सव का कच्चा माल
या सजावटी गुड़िया ?

चर्चाओं में अटकी
आपकी ‘मुक्ति’!
​खींचो उसे जोर से
और बनाओ उसका निशान
और गाड़ दो
उसे इस युग के शीर्ष पर ।

८. अहिंसा

उस अलमारी में रखा चाकू
जिसकी धार उतनी ही तेज है. !

मुझे अहिंसा का पाठ
कौन पढ़ा रहा है
सामने बैठकर ?

साहसपूर्वक कह रहा हूँ मैं
‘शरण शरण देवराय ‘
मुॅंह में चाकू की नोक की तरह
हिलती जिव्हा लपलपाकर |

मैं अहिंसा के पथ पर लीन
या ग्लानि में
मेरे भीतर उत्साहपूर्ण सत्संग I

तभी दूसरे कमरे में
टीवी उगल रहा है खबरें –
हत्यारा जो नींद में ही सोये
किसी का गला काटकर
भाग निकलने की I

अलमारी हिलने लगती है,
अचानक
जैसे गिरने की प्रयास में,
मैं उठता हूँ,
अपना संतुलन ठीक करता हूँ,
अलमारी का
दरवाज़ा खोलता हूँ जो,
लगभग खुलने के अंदाज में है I

****

Recommended Posts

2024 Hindi kavita ऑगस्ट

उत्तम कोलगावकर : चंद कवितायें

परिचय : उत्तम कोलगावकर मराठी के एक सशक्त कवि है । उनकी कविता प्राय : भाष्यकविता की रूप में सामने आती है । आकाशवाणी में एक अफसर के रूप मे सेवापूर्ति कर वे आजकल नासिक में निवृत्त जीवन जी रहे है । ‘ जंगलझडी ‘ ,”तळपाणी ‘ , ‘ कालांतर ‘ आदि कविता संग्रह उनके […]

सा हि त्या क्ष र 
2024 जुलै प्रेरणा

‘भवरा ‘च्या निर्मितीची कथा : विजय जाधव,अंबड

बहुचर्चित ‘पांढरकवड्या ‘ कादंबरीचे लेखक विजय जाधव यांच्या ‘भवरा’ या कथासंग्रहाच्या निर्मितीमागील प्रेरणा चार वर्षांपूर्वी कोरोनाच्या महामारीने जग हादरून गेले होते. मानव जातीच्या अस्तित्वावरच प्रश्नचिन्ह निर्माण झाले होते. या एकाकी काळात मी बरीच पुस्तके वाचली, पण यामध्ये प्रसिद्ध लेखक बाबुराव बागुल यांचे ‘सूड’ हे पुस्तक वाचण्यात आले आणि मला हे पुस्तक खूप आवडले. काही लेखकांची […]

सा हि त्या क्ष र 
2024 Hindi kavita सप्टेंबर

अशोक कोतवाल की कवितायें

परिचय : अशोक कोतवाल मराठी के एक सुप्रतिष्ठित कवि है । मराठी साहित्य जगत के कई सम्मानों ने उन्हें नवाजा गया है । फिलहाल वे महाराष्ट्र के जलगांव में स्थित है । समकाल पर विपरित एवं गंभीर टिपण्णी करना, ये उनकी विशेषता है । प्रस्तुत है उनकी चंद कविताओं का संजय बोरुडे द्वारा हिंदी अनुवाद […]

सा हि त्या क्ष र 
2024 History ऑगस्ट

युआन श्वांग : भाग ५ वा -सतीश सोनवणे

( प्रसिद्ध लेखक जगन्मोहन वर्मा यांच्या सुयेन च्वांग या पुस्तकाचा क्रमश: अनुवाद . ) प्रकरण पाचवे-भारतयात्रेला सुरुवात: युआन श्वाग चिनचाऊ चा भिक्षू हियावत्ता’ बरोबर चांगआन सोडून चिनचाऊला आला. तो एक रात्र तिथेच राहिला. दुसऱ्या दिवशी त्याला लान चाऊ येथील एक साथीदार भेटला जो चिन चाऊला काही कामासाठी आला होता आणि त्याच्या घरी जात होता. तो […]

सा हि त्या क्ष र 

Leave A Comment