2024 Hindi kavita सप्टेंबर

अशोक कोतवाल की कवितायें

सा हि त्या क्ष र 

परिचय : अशोक कोतवाल मराठी के एक सुप्रतिष्ठित कवि है । मराठी साहित्य जगत के कई सम्मानों ने उन्हें नवाजा गया है । फिलहाल वे महाराष्ट्र के जलगांव में स्थित है । समकाल पर विपरित एवं गंभीर टिपण्णी करना, ये उनकी विशेषता है । प्रस्तुत है उनकी चंद कविताओं का संजय बोरुडे द्वारा हिंदी अनुवाद । मूल कवि से संपर्क : 98501 17539

१. खोज


पूरे शहर में
इश्तिहार चिपका दिया है
मेरे गुम होने का ।

सच्चाई ये है कि,
मैं गुम नहीं हुआ हूँ ,
बल्कि गुम किया गया हूँ
और ये बात कैसे कोई
समझ नहीं पा रहे हैं ?

सब लोग मुझे ढूंढ रहे हैं ।
लेकिन मैं तो कब का
खड़ा हूँ
मेरे इश्तिहार के सामने !

बेशक लोग देख रहे है,
इश्तिहार को,
बिना मेरी ओर देखे
और मैं ठहाके लगा रहा हूँ ।

इसका मतलब साफ है,
किसी को भी
इस तरह गायब करके
बिठाया जा सकता है
किसी इश्तिहार में ..
ये बात बिल्कुल
संभव सी हो गई है,
आजकल ।
*

२. रथ खींचने वाले लोग

क्या ये पसीने से तरबतर,
प्राणों की परवाह किये बिना
रथ खींचने वाले लोग
जानते भी हैं;
कि रथों में घोड़े लगे होते हैं?

भगवान है तो क्या हुआ,
क्या हमें जरूरी है
उसके घोड़े बनना ?
उस समय के घोड़े ही जानते हैं
कि कब किसने
सत्य पर या असत्य पर
विजय प्राप्त की है।

हालांकि रथ के घोड़ों के पास
दृष्टि कहां होती है ?
वे तो सीधी रेखा में चलते हैं,
और कोड़े की
फटकार तो तय ही है
जरा सी भी खिंकल निकालने पर…

यह जानते हुए
कि इतिहास घोड़ों का नहीं लिखा जाता,
लोग सदियों से रथ को
खींचते आ रहे हैं लोग
जब तक कि उनके मुँह से
झाग न निकल जाए।

शायद उन्हें घोडे बनना पसंद है… ।

*

३. ऐसे कैसे सो गये है कवि गण ?

कवि गण सो गये ?
उठाओ उन्हें ;
बजाओ नगाड़े, पिटो ढोल …

फिर भी नहीं जगे
तो लगा दो झापड़, काटो चिकोटी,
खींचो बाल उनके

सभी ओर जानलेवा हलाहल
और सर के पास
प्रकाश का जरासा टुकडा लेकर
आखिर वें सो कैसे सकते है ?

*

४. भीतर के दर्द को नींद नहीं आ रही है …

जब से मार दिया है ,
मेरे बिरादरी के
उस आदमी को ,
जो हमेशा सच ही
कहता रहा
अपने समकाल के बारे में ।

तब से मेरे भीतर के दर्द को
नींद नहीं आ रही है ;
और मैं मेरे बेजान हाथों से
सहला नहीं पा रहा हूँ उसे ।

पूरे आकाश में
सुनाई देते है प्रतिध्वनी ;
उसकी आवाज के
और काट दिये जा रही है ;
उसे सुनने की इच्छाओं को ।

घोड़े बेचकर सो रहे है लोग
अपनी सुरक्षा सर के पास रखकर
और मैं अस्वस्थ युग युग से
मेरे भीतर के दर्द को
अपनी गोद में लेकर ।

*

५. तकलीफ

आधी रात ढलने लगती है,
लेकिन लड़के को
बहुत गहरी और शांत
नींद नहीं आती है ।

मैं बार-बार जागता रहता हूं.

मेरी नींद खुलती रहती है बार बार
और लेटे लेटे ही
उसे देख लेता हूँ ,
गर्दन उठाकर ।

मुझसे देखा नहीं जाता,
लड़का हर दिन
बिस्तर पर औंधे मुंह लेटे हुए
मोबाइल फोन से
रत होते हुये ।

वह जवान है इतना
कि वो मेरी बातों को
आसानी उड़ा सकता है
और उसे अपने
भलाई बुराई की पहचान है ।

लेकिन मुझे
तकलीफ होती है
उसे इतनी रात गये जागता,
और हर सुबह देर से उठता
और पूरी तरह से अपने आप में ही डूबा रहता देखकर ।

*

६. बाबरी मस्जिद मामला

मुझे भी उत्सुकता थी…
‘राम’ और ‘रहीम’ की नहीं,
बल्कि कोर्ट के फैसले की .. ।

उस विवादास्पद जगह पर
राम ‘रहीम’ बनकर आये
या रहीम ‘राम’ बनकर
भला इससे मुझे क्या फर्क पड़ता है?

लेकिन इससे फर्क
उन लोगों को पड़ता है;
जिन्होंने राम-रहीम
साझा किया है ;
अपने अपने हिसाब से ।

कोई नहीं जानता था कि
बंटवारा राम-रहीम का नहीं

बल्कि जमीन का हुआ था,
लेकिन ये बंटवारा
‘राम-रहीम’ के
नाम पर ही हुआ था. ।

अब जमीन किसकी है?
आपकी ?मेरी ?
या ‘राम-रहीम’ वालों की?
जमीन तो तब भी थी और
आज भी है;
जब कोई
‘राम’ या ‘रहीम’ नहीं था… ।

७. मुक्ति

सभाओं और जुलूसों में
संस्कृति के नाम पर
पहनवा दी जाती है
आपको साडियाँ
और आप भी
बेहिचक पहनती हैं?

तुम्हारे पैर;
जो थे साडी में फँसे
और गजरे की खुशबू
क्या कभी थी तुम्हारी ?

क्यों आप इतनी
अभिभूत (प्रभावित) हो जाती हो?
कि कमर में ठूंसा पल्लू
बिलकुल नहीं उड़ता ।
फुगड़ी खेलते समय ।

एक सीधी रेखा में
चलनेवाली महिलाओं,
क्या आप हैं,
उत्सव का कच्चा माल
या सजावटी गुड़िया ?

चर्चाओं में अटकी
आपकी ‘मुक्ति’!
​खींचो उसे जोर से
और बनाओ उसका निशान
और गाड़ दो
उसे इस युग के शीर्ष पर ।

८. अहिंसा

उस अलमारी में रखा चाकू
जिसकी धार उतनी ही तेज है. !

मुझे अहिंसा का पाठ
कौन पढ़ा रहा है
सामने बैठकर ?

साहसपूर्वक कह रहा हूँ मैं
‘शरण शरण देवराय ‘
मुॅंह में चाकू की नोक की तरह
हिलती जिव्हा लपलपाकर |

मैं अहिंसा के पथ पर लीन
या ग्लानि में
मेरे भीतर उत्साहपूर्ण सत्संग I

तभी दूसरे कमरे में
टीवी उगल रहा है खबरें –
हत्यारा जो नींद में ही सोये
किसी का गला काटकर
भाग निकलने की I

अलमारी हिलने लगती है,
अचानक
जैसे गिरने की प्रयास में,
मैं उठता हूँ,
अपना संतुलन ठीक करता हूँ,
अलमारी का
दरवाज़ा खोलता हूँ जो,
लगभग खुलने के अंदाज में है I

****

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2024 Hindi kavita ऑगस्ट

उत्तम कोलगावकर : चंद कवितायें

परिचय : उत्तम कोलगावकर मराठी के एक सशक्त कवि है । उनकी कविता प्राय : भाष्यकविता की रूप में सामने आती है । आकाशवाणी में एक अफसर के रूप मे सेवापूर्ति कर वे आजकल नासिक में निवृत्त जीवन जी रहे है । ‘ जंगलझडी ‘ ,”तळपाणी ‘ , ‘ कालांतर ‘ आदि कविता संग्रह उनके नाम पर है । प्रस्तुत है उनकी डॉ संजय बोरुडे द्वारा अनुदित चंद कवितायें । १. आजकल आजकल हर रोजकुछ ना कुछ होता रहता है । कहीं पे तू तू -मैं मैं , कहीं पे हाथापाई ,कहीं पे लूट-पाट, कहीं पे चोरी-डकैती,कहीं पे आगज़नीतो कहीं पे गोलियाँ । कहीं पे हादसा तो कहीं पे घातपात,कहीं पे अत्याचार,अनाचारतो कहीं पे बलात्कार,कहीं पे पथराव तो कहीं पे भगदड़कहीं पे हत्या तो कहीं पे बम विस्फोटकुछ ऐसाही घटता रहता है रोज । हर पल दिन जैसे सिहरता है,खून से लथपथ होता है ।आदमी को घर से बाहरकदम रखने को भी ड़र लगता है ।मानो , बाहर कोई आतंकघात लगाकर बैठा हो । रात को तो नींद भी नहीं आतीऔर आती भी है तोसुबह उठ पाने की आशंकाबनी रहती है ,आजकल । *** २. कैद ये बात सच है,हमारे गले में कोई रस्सी नहींऔर हमारे लिये बहुत साराचारापानी भी उपलब्ध है । ये सत्य है किहम घूम सकते है, चल सकते है ,या कूद सकते है ,छाँव में बैठ सकते है ,थकने पर सो सकते है .. । लेकिन जरा सी दूरीपरहमारे आसपासएक मजबूत बाड़,जिसके दरवाजे परबड़ा सा तालाऔर हम कैद हुये है अंदर ।अब सवाल ये है किकितने लोगइस सच्चाई सेवाकिफ़ है ? ३. ज़रा सा अनाज ये खयाल बाद का हैकि हमारे हिस्से मेंकोई अनाज बचेगा या नहींलेकिन पहले बोना तो जरूरी है । बोने से उग आयेगाऔर उगने सेउन में भुट्टे भी लगेंगे ।अगर उन्हें हम ना खायेबल्कि पंछी खा जायेतो क्या हर्ज है ? और पंछी इतने भी मतलबी नहीं होते ।वें कुछ अनाज बचा रखते है पीछे ,हमारे लिये । खेत की सूखन बटोरने सेज्यादा बेहतर हैइस जरा से बचे हुयेअनाज को बटोरना ।क्या कहते है ? ४. गडरिया तेरे हाथ मेंसोने के घुंगरू लगवाकरएक लाठी थमा दी ।और फिर तुम्हें सौंप दियाएक हराभरा चरागाह ,रहने के लिये एक बाड़ाऔर घूमने के लिये घोडा । बाद में तूपूरी लगन सेरखवाली करने लगाअपने आपसभी भेड़ों की ।अब तू कितना होशियाररहता है कि कहींझुंड से अलग कोईभेड़ तितर बितर तो नहींहो रहा है ?आखिर भेड़ तो भेड़ ही ठहरे ;जो तेरी आज्ञा से चलते है ,चरते भी है । तुम पर और तुम्हारेभेड़ों परवें बारीकी सेनिगाह रखते हैं उपर सेऔर निश्चित समय परआकर तुम्हारे भेड़ों कीसब ऊन कतराकर ले जाते हैं ।तू भी अब आदी हो गया है :बीच बीच मेंभेड़ों को इकट्ठा करकेअपने मालिक को देता हैभेड़ों का पूरा हिसाबऔर लगवा लेते होनिष्ठा की मुहर .. बार बार । लगता है,तुम्हारे अंदर के भेड़ कोगडरिया में तब्दील करने काउनका षड्यंत्रआज कामयाब हो गया है । अब हाथ की लाठी फेंककर,हाथ उठाकर ,आसमान हिला देनेवालीललकारकब गूँजेगी ,इसी प्रतीक्षा में हैपूरा खेत – खलिहान । ५. रोटी का चित्र पीठ से पेट चिपकेलोगों का झुंड निकलकरउसके दरवाजे तक आ पहुंचता हैऔर अपना मुँह खोलता है-” माईबाप, रोटी चाहिये रोटी “ वह बिल्कुल शांतझुंड के सामने आता है :झुंड धूप में ,वह छाँव में । छाँव में खड़ा होकरवह पूरे आवेश के साथलंबा चौडा भाषण झाड़ने लगा :झुंड को रोटी मिलने की योजनासमझाने लगाऔर बोलते बोलते उसनेझुंड के सामने फैलायाएक गर्म रोटी काबड़ा चित्र ।अब चित्र से रोटीनिकलकर बाहर आयेगीये सोचकरझुंड लौट जाता है । अब भीपीठ से पेट चिपके लोगों का झुंडउसके पास आता हैतो वह हर बारउनके सामनेफैलाता हैरोटी का चित्र ६. आज कुछ हुआ ही नहीं आज कुछ हुआ ही नहीं :दिन कितना सीधाकिसी सूत- सा सरल ।एक भी झुर्री नहीं पड़ीदिन के चेहरे पर । आज दिनभरसामने पेड पर पंछीचहचहा रहे थे ।लेकिन एक बार भीपेड़ पर उनकाकोई हंगामा नहीं हुआ ।आज एक बार भीकोई नाग पंछियों केघोंसले की तरफ नहीं बढ़ा । आज पवन नेचक्रवात सा कोईतुफान नहीं खड़ा कियाऔर न ही किसी पेड़ कोजड़ से उखाड़ दिया है,न ही किसी झोंपडे केछत उछाल दियाकिसी टोपी की तरह ।आज पवन ने बिल्कुलअच्छे , सयाने आदमी की तरहबर्ताव किया ।चावल के खेतों परलहराता रहा धीरे – धीरे । आज दिनभर दुखथका-मांदा सोता रहाऔर आज दिनभरमेरी आंखें सूखती रही । ***

सा हि त्या क्ष र 
2024 जुलै प्रेरणा

‘भवरा ‘च्या निर्मितीची कथा : विजय जाधव,अंबड

बहुचर्चित ‘पांढरकवड्या ‘ कादंबरीचे लेखक विजय जाधव यांच्या ‘भवरा’ या कथासंग्रहाच्या निर्मितीमागील प्रेरणा चार वर्षांपूर्वी कोरोनाच्या महामारीने जग हादरून गेले होते. मानव जातीच्या अस्तित्वावरच प्रश्नचिन्ह निर्माण झाले होते. या एकाकी काळात मी बरीच पुस्तके वाचली, पण यामध्ये प्रसिद्ध लेखक बाबुराव बागुल यांचे ‘सूड’ हे पुस्तक वाचण्यात आले आणि मला हे पुस्तक खूप आवडले. काही लेखकांची आणि आपली काय नाती असतात कुणास ठाऊक! मी कॉलेजमध्ये असताना बाबुराव बागुल यांची ‘मरण स्वस्त होत आहे’ हे पुस्तक वाचले होते. ते मला खूप आवडले होते. पुढे २०१४ साली माझा ‘दाखला’ हा पहिला कथासंग्रह प्रकाशित झाला. या कथासंग्रहास २०१५ चा ‘यशवंतराव चव्हाण मुक्त विद्यापीठ नाशिकचा’ प्रतिष्ठेचा ‘बाबुराव बागुल’ कथा पुरस्कार मिळाला. त्यामुळे हुरुप येऊन लिहू लागलो आणि ‘पांढरकवड्या’ ही कादंबरी लिहिली. ती स्वामी रामानंद तीर्थ विद्यापीठ नांदेडच्या एम.ए च्या अभ्यासक्रमासाठी लागली . त्यानंतर कोरोनाच्या थैमानात माणूस माणसापासून दूर गेला. या महामारीने बाधित व्यक्तीचा श्वास हॉस्पिटलमध्ये कोंडला गेला. या महामारी पेक्षा त्या व्यक्तीला एकाकीपणाने जास्त घेरले. या काळात मी बाबुराव बागुल यांचे ‘सूड’ हे पुस्तक वाचले. तसे हे पुस्तक फक्त ६४ पानांचे आहे. त्याला कादंबरी म्हणावे की दीर्घकथा हा विषय आजही चर्चेचा आहे; पण या पुस्तकापासून प्रेरणा घेऊन मी दीर्घकथा लिहायला सुरुवात केली . आजचे दैनंदिन जीवन प्रचंड व्यस्त बनले आहे. करिअर करण्याच्या नावाखाली कुटुंब सुसाट धावू लागले आहे. अशा धावत्या कुटुंबामध्ये वृद्ध माणसं ही ओझे बनली. आजूबाजूला त्यांच्या वेदनांचे आवाज ऐकू येऊ लागले… आणि एके दिवशी वर्तमानपत्रांमध्ये बातमी वाचली की, मंगरूळच्या बंधार्‍यामध्ये वृद्ध दांपत्याने उड्या मारून आत्महत्या केली. बाजूला त्यांच्या पिशव्या ,चपला आणि काठ्या पडलेल्या. आपल्या वृद्धापकाळात ज्यांनी आधाराच्या काठ्या व्हायचं त्यांनीच त्यांना बाहेरचा रस्ता दाखवला. यातूनच मी ‘सिंगुस्त’ ही दीर्घकथा लिहिली. आज शहरी भागात तर वृद्धांना मोजताना तुमच्या घरामध्ये किती डस्टबिन आहेत असा प्रश्न विचारू लागले . आज घराघरांमध्ये माणसं अस्वस्थ होत आहेत.पुरुषी व्यवस्थेमध्ये स्त्रियांवर अन्याय- अत्याचार होतात ;तर वृद्धांच्या सांभाळण्यामध्ये घराच्या कर्त्या पुरुषाची दमकोंडी होते. स्त्री आणि पुरुष यांच्या पलीकडेही एक शापित जग आहे ज्याकडे समाज अतिशय तुच्छतेने पाहतो ते तिसरे जग आहे.ते जग आहे तृतीय पंथीयांचे. एका प्रवासामध्ये भेटलेल्या एका तृतीय पंथीयासोबत बोलताना मानव जातीचा एक घटक किती भयंकर यातना सहन करतो आहे हे लक्षात आले. पुढे एका मित्राने त्याच्या एका तृतीय पंथीय मित्राशी ओळख करून दिली. त्या तृतीय पंथीयाचे ते जग अतिशय भयंकर होते. ते जग मी ‘कानपिळणी’ नावाच्या कथेमध्ये रेखाटण्याचा प्रयत्न केला आहे. स्वातंत्र्य मिळून ७५ वर्षानंतर ही भटक्या जमातीच्या दुःखाचे गाठोडे त्यांच्या डोक्यावरून उतरले नाही. एक गाव नाही, घर नाही, सातबारा नाही. पोटासाठी नुसती भटकंती. यांना घरकुल द्यायचे म्हटले तरी त्यामध्ये कितीतरी राजकारण आडवे येते. प्रत्येक माणसाची किंमत त्याच्यामागे असणाऱ्या डोक्यांवर ठरू लागली. एकाकी असणारी माणसं अलगदपणे व्यवस्थेच्या बाहेर फेकली जाऊ लागली. भटकणारी ही लोकं महामुर गरिबीतही आपली इमानदारी विकत नाहीत. याच विषयावरती मी ‘कन्हैया’ नावाची कथा लिहिली. माणसांनी जसे रंग बदलले तसा निसर्गही बदलत चालला. आज शहर आणि गाव यामध्ये एक दूषित हवा वाहते आहे. पावसाळ्यात भयंकर ऊन पडू लागले, तर उन्हाळ्यात पाऊस. पावसाळ्यातले सर्वच नक्षत्र कोरडे जाऊ लागले. पंचांगाचा पराभव करून ढग भुईच्या कोणत्या जन्मीचा सूड घेत आहेत कुणास ठाऊक! मराठवाड्यातील दुष्काळाची भयंकर दाहकता मी ‘हवा’ नावाच्या कथेमध्ये रेखाटण्याचा प्रयत्न केला आहे. समाजातील स्त्रिया, तृतीयपंथीय, वृद्ध यासारख्या दुर्लक्षिलेल्या घटकांभवती पडलेल्या समस्येचा ‘भोवरा’ आहे. यातून बाहेर पडण्याचा प्रत्येक जण प्रयत्न करतो आहे. …. आणि हे सर्व मी माझ्या ‘भवरा’ या कथासंग्रहात रेखाटण्याचा प्रयत्न केला आहे. लेखकाचा परिचय : पूर्ण नाव: विजय दिगंबर जाधव, वात्सल्य बिल्डिंग, संभाजी नगर,जुन्या गॅस एजन्सी जवळ, अंबड. ता. अंबड, जि. जालना. बालसाहित्याची कक्षा रुंदावणारी डॉ. संजय बोरुडे यांची नवी बालकादंबरी..

सा हि त्या क्ष र 
2024 History चांदबीबी नोव्हेंबर

अपमानाचे परिणाम – चांदबीबी प्रकरण ४ थे

     एका अपमानाचे परिणाम मूदगलच्या या दोन पुजाऱ्यांच्या प्रगतीतील फरक सांगण्याची आपणास काय गरज? एक हिंसक, उद्दाम, बेईमान तर दुसरा हळवा, शांत , स्थितप्रज्ञ, धमक्या आणि छळाला न घाबरणारा. त्याने वेळोवेळी त्याच्या सहकाऱ्याचे मंडळी प्रती असलेले हिंसक वर्तन, पुन्हा पुन्हा घडणारी अनैतिकता , अनियमितता उघडकीस आणण्याचा प्रयत्न केला होता. परंतु तो व्यर्थ होता. गोव्याच्या आर्च बिशपशी डॉम डिएगोचे चांगले संबंध होते. चौकशी करणारे सुद्धा त्याचे मित्र होते. त्याला त्याच्या सहकारी फ्रान्सिस्कन तपस्वीच्या तक्रारीची फिकिर नव्हती. त्याने मेंढपाळांचा एक गटही तयार केला होता. त्यात काही उनाड तरुणसुद्धा होते जे तपस्वीच्या भक्तीची थट्टा करत, त्याचा सल्ला आणि भक्तीच्या आदेशांचा विरोध करत. आपल्या सहकाऱ्यापासून पूर्णपणे मुक्त होण्याच्या दिशेने डॉम डिएगोचे हे पहिले पाऊल होते. त्याला त्याच्या स्वतःच्या कामामध्ये ढवळाढवळ केल्याबद्दल चौकशीत दोषी ठरवणे यापेक्षा सोपे ते काय?ज्या अध्यात्मिक बाबी सोडवण्यासाठी त्याला पाठवण्यात आले होते त्यात हलगर्जीपणा केल्याबद्दल त्याला दोषी ठरवणे यापेक्षा दुसरे काय यशस्वी होऊ शकते? हेही पुरेसे नसेल तर चर्च चे शत्रू असलेल्या मुसलमानांशी जवळीक केल्याबद्दल, तो आणि त्याची बहीण डोना मारियाने मुदगलच्या नवाबाला सारख्या भेटी दिल्या बद्दल त्याला दोषी ठरवता येऊ शकते. आह! तो त्यांना वेगळे करु शकतो का, त्या सुंदर मुलीला कोण वाचवू शकेल? तिला पहिल्यांदा पाहिल्या पासून इतक्या सुंदर, इतक्या तरुण मुलीला मिळवण्याच्या दुष्ट विचाराने त्याच्या इतर भावनांवर मात केली होती.तिच्या ताब्यासाठी काहीही करण्यास कोणतीही जोखीम फार मोठी असू शकत नाही आणि तरीही अशी कृती करणे- तिला बळजबरीने दूर नेणे – म्हणजे त्याचा स्वतःचा नाश आणि कदाचित मृत्यू सुनिश्चित करणे असेल. नाही सगळं कसं हळू हळू व्हायला पाहिजे. एकदा का तिचा भाऊ चौकशीसाठी गोव्याला गेला की काही महिने नाही काही वर्षे तरी त्याला काही बातमी किंवा मदत मिळण्याची शक्यता नाही.हा एक भयंकर कट होता, आणि दिवसेंदिवस त्याला स्वतःला रोखणे अधिकाधिक कठीण होत गेले, कारण तिच्या अतीव सौंदर्याच्या सतत दिसण्याने त्याला जळजळ होत होती. चर्चच्या सेवेत तो सतत तिच्याशी जवळीक साधत होता.त्याने आपला अहवाल गोव्याला लिहिला. त्यात फ्रान्सीस डी’आल्मेडा याचे वर्णन केवळ एक पुस्तकी किडा, चर्चच्या सन्मान आणि शिस्तीकडे दुर्लक्ष करून, विधर्मी पुस्तकांच्या अभ्यासात गढून गेलेला असे केले होते यात पुढे तो लिहितो- त्याचे सर्वात जिवलग मित्र ब्राह्मण पुरोहित आणि मुस्लिम आहेत. चर्चमधील मेंढपाळांना दिलेली त्यांची व्याख्याने विधर्मी शिकवणीचे केवळ रूपांतरं आहेत, ज्यामध्ये त्याने स्वत: काही चूक केली नसेल तर बरे, तशी तो कोणत्याही क्षणी करू शकतो आणि अशा प्रकारे विश्वासू मिशनऱ्यांनी परदेशात मोठ्या परिश्रमाने उभे केलेले चर्च गमावले जाऊ शकते आणि पुन्हा विधर्मीवादात पडू शकते, ख्रिश्चन धर्माची निंदा करण्याचे हे एक षडयंत्र आहे. त्याची बहीण, डोना मारिया, जरी तिने उघडपणे धर्माचा प्रसार केला असला तरीही ती प्रत्यक्षात तिच्या भावापेक्षा अधिक भ्रष्ट आहे. तिच्या सततच्या आश्रय स्थाना पैकी एक नवाबाचे घर आहे, जिथे तिचे सौंदर्य आणि कर्तृत्वासाठी तिचे कौतुक केले जाते. नवाब खूप श्रीमंत आहे, आणि त्याला एक मुलगा आहे, जो आता युद्धांमध्ये गुंतलेला आहे, परंतु तो परत आल्यावर डोना मारियाशी लग्न करेल अशी बातमी आहे. शेवटी, डॉम डिएगोने सल्ला दिला की फ्रान्सिस डी’आल्मेडाला ताबडतोब एकटे पाठवले जावे, त्याला ताकीद दिली जावी आणि गरज पडल्यास त्याच्या हलगर्जीपणाबद्दल खटला चालवावा; आणि त्याची बहीण भावाच्या परत येण्याची वाट पाहण्यासाठी इथेचं ठेवावी किंवा परिषदेच्या हुकुमाप्रमाणे तिला गोव्याला पाठवावे.या अहवालातून दुष्ट हेतूचा कुठलाही संशय येत नव्हता की हिंसा व्यक्त होत नव्हती. यातून असा निष्कर्ष निघाला की एक पात्र अणि अती अभ्यासू व्यक्तिमत्त्व हळू हळू हलगर्जी बनत गेले, ज्याची भरपाई केवळ वरिष्ठांच्या आज्ञेनेच होऊ शकते. त्या पुजाऱ्याला शक्य तितक्या लवकर परिषदे समोर हजर राहण्याचा आदेश चर्च च्या अधिकाऱ्यांनी दिला. गोव्या पासून मुदगलला संदेश पाठवणे सोपे काम नव्हते. काही विशेष संदेशवाहकच हे काम करु शकत. जोखीम घेणाऱ्या व्यक्तीच देशातून मार्गक्रमण करून संदेश घेऊन मागे येऊ शकत. काहीवेळा मुदगलच्या कापूस आणि लोकरीच्या बदल्यात आपली किनारपट्टीवरील उत्पादने घेऊन जाणारे व्यापारी आणि वाहक ही पत्रे पोचवत. अशाच एका गटाकडून डॉम डिएगोला तो वाट पाहत असलेले परिषदेचे पत्र मिळाले होते.त्याच्या इच्छेप्रमाणे सर्व काही झाले होते. त्याच्या सहकाऱ्याला चर्चच्या कारभारातून निलंबित करण्याचे अणि लवकरात लवकर गोव्याला पाठवण्याचे अधिकार डॉम डिएगोला मिळाले होते. पत्रात त्याला चौकशी साठी हजर राहण्याचाही उल्लेख होता. पत्रात डॉम डिएगोच्या सतर्कतेची आणि चर्चच्या कल्याणासाठी काम करण्याच्या उत्साहाची प्रशंसा केली होती.डोना मारिया बद्दलच्या त्याच्या प्रस्तावाची दखल घेण्यात येऊन आवश्यकता असेल तो पर्यंत तिला चर्चच्या परिसरात ठेऊन लक्ष ठेवण्यास सांगण्यात आले.डॉम डिएगोला दिलेल्या प्रस्तावावर निर्णय घेण्यास फार वेळ नव्हता. त्याला पत्र मिळाल्याबरोबर सकाळच्या सभेनंतर शब्बथच्यावेळी त्याने त्याच्या सहकाऱ्याला निलंबित केल्याचे जाहीर केले आणि परिषदेकडून मिळालेला आदेश त्याने फ्रान्सिस डी अल्मिडाला दिला. त्याने तो आदराने स्वीकारला. कानडी भाषा जाणणारा दुसरा पुजारी लवकरच पोचेल असे त्याने दुभाषाच्या माध्यमातून जाहीर केले.डोना मारियाने ती घोषणा जड अंतःकरणाने ऐकली ज्याचे वर्णन करता येणार नाही. तिचा भाऊ वेदीवर काम करत होता आणि ती थोड्या अंतरावर तिच्या वर्गातील मुलांना घेऊन बसली होती. तिने तिच्या भावाला नेहमी पेक्षा लवकर जाताना पाहिले. त्याने नेहमी सारखे मुलांना तपासण्याचे टाळले. त्यामुळे तिने मुलांना सोडून दिले अणि ती घरी गेली. तिथे तिचा भाऊ तिला वध स्तंभा समोर गुडघे टेकून बसलेला दिसला. त्याचा आदेश त्याचा पायाजवळच. पडलेला होता. तो प्रार्थना करत होता घामाचे थेंब त्याच्या भुवयांवर दिसत होते. त्याच्या देवाने जशी क्रॉस वर जाताना वेदना आणि लाज सहन केली होती तसे.डोना मारियाने त्यात व्यत्यय आणला नाही आणि प्रार्थनेचे फक्त शेवटचे शब्द ऐकून ती दरवाजाच्या मागे सरकली.“आणि आता, हे माझ्या प्रभू, जर तुझी इच्छा असेल तर या धोक्यापासून माझे रक्षण कर. जर मला लाज, यातना किंवा मृत्यू सहन करावा लागला, तर तू मला दयाळूपणे साथ दे. तुझ्या कार्याकडे दुर्लक्ष केल्याची मला जाणीव नाही, परंतु मी केलेल्या अनेक चुका आणि उणिवा, अनेक नकळत झालेल्या पापांची जाणीव आहे, तर, हे माझ्या तारणहारा, मला तुझ्या दयाळू हातांची आणि काळजीची गरजआहे शंका घेऊ नकोस, घाबरू नकोस, परंतु माझ्या पूर्ण विश्वासाने हे प्रभु, तुझी इच्छा पूर्ण होईल.”मग त्याने आपले डोके वधस्तंभाच्या पायावर टेकवले, आणि काही क्षण तो उत्कटतेने रडला आणि शांतपणे उठला आणि सर्वात वाईट परिस्थितीसाठी तयार झाला. त्याची बहीण त्याला चेंबरच्या दारात भेटली आणि त्याच्या गळ्यात पडली . त्याच्या नम्र प्रार्थनेने तिला हलवले तरी तिला रडू येत नव्हते; तिचे मन निराशेने ग्रासले होते, ज्यात आशेचा कोणताही किरण शिल्लक नव्हता. ” भाऊ! भाऊ!” ती सतत ओरडत होती, “तू हे कसं सहन करणार? त्याने तुझ्यावर केलेल्या आरोपा सारखे तू काय केलेस?” “मी सहन करीन, मारिया,” तो तिच्या कपाळाला ओठांनी स्पर्श करत हळूवारपणे म्हणाला. “त्याने, आमच्या प्रभुने , विजय मिळावा यासाठी लाज सहन केली, आणि मला भीती वाटत नाही, आणि तुही घाबरू नकोस ख्रिस्त आणि चर्चचे सैनिक कधीही संकटात डगमगत नाहीत. मी तुला सांगतो, घाबरू नकोस.” “मी फक्त एक कमकुवत

सा हि त्या क्ष र 
2024 Hindi kavita डिसेंबर प्रादेशिक बोली

संजीब गुरुङ की नेपाली कवितायें

: परिचय : नाम– सन्जीब गुरुङपिता– स्व एम बी गुरुङमाता – श्रीमती बिन्दिया राई (गुरुङ)जन्मस्थान – मानाबारी, डुवर्सशिक्षा – कला में स्नातकवर्तमान – कलकत्ता विश्वविद्यालय के अन्तर्गत Kolkata Police Law Institute में LLB कोर्सपेशा – कलकत्ता पुलिस सब इन्सपेक्टरपाठशाला – Scorts Mission School , Shantirani Higher Secondary School,Pacheng Bazar, Sonada , Darjeeling संपादकीय टीप : संजीब गुरुङ हे नेपईली भाषेत लिहिणारे आसामी कवी आहेत. आळपक्षरी भाषी हे त्यांच्या कवितेचे बलस्थान आहे. नुकत्याच झालेल्या परिचय साहित्य उत्सवात ते आमंत्रित होते. पेशाने सब इन्स्पेक्टर असणारे संजीब हे संवेदनशील कवी आहेत .. साहित्याक्षरच्या ब्लॉगसाठी त्यांनी या कविता दिल्या आहेत. त्यांचा अनुवाद न देता मूळ नेपाळी भाषेचा खुमार तोच रहावा म्हणून त्या आहे तशाच दिल्या आहेत.. १. मेरो उमेर मेरो उमेर सोध्नुभएको? यी चियाबारीहरू यी कुनेनबारीहरू यी गाउँ र बस्तीहरू यो देश भन्दा जेठो हुन्। अनि म यी चियाबारीहरू भन्दा यी कुइनेनबारीहरू भन्दा यी गाउँ र बस्तीहरू भन्दा जेठो हूँ। *** २.  बिलेटेड शुभकामना म त मलाई अझै सन्देहको नजरले हेर्ने मेरा छिमेकीहरूका मैला आँखाहरू पखाल्दै थिएँ पाठशाला र कलेजहरूमा मलाई गान्धी र सुबासका इतिहास पढ़ाउने मेरा शिक्षक शिक्षिकाहरूलाई जंगवीर सापकोटा ,इन्द्णी र सावित्रीहरूका इतिहास पढ़ाउॅदै थिएँ अरूलाई मीठो पकवान पस्किने डाडु पन्यूॅले भान्सेले मेरो निधार भरिभरि उठाइदिएको टुटुलकाहरू मुसार्दै थिएँ टुक्रा टुक्रा पारेर च्यातिदिएको मेरो घडेरीको खतियनको टुक्राहरू बटुल्ने र जोड़ने झर्कोलाग्दो काममा व्यस्त थिएँ स्वतन्त्रता दिवस आएको गएको थाहानै भएन मलाई बिलेटेड शुभकामना सबैलाई । (रचना : 15.8.2015 ) *** ३. डुवर्स कहाँ छ? पश्चिम बङ्गालको उत्तरतिर फर्किनुहोस् अनि आकाशतिर हेर्नुहोस् जहाँ गिजिङगिजिङ चिल र गिद्धहरू उडीरहेका र झम्टिरहेका देख्नुहुनेछ होsss ठीक त्यसकै मुनि पर्छ डुवर्स। सानासाना नानीहरू हेर्ने काममा खटिरहेका सानासाना नानीनैहरूका सानासाना मायालाग्दा पाइलाका डामहरू पहिल्याउँदै पहिल्याउँदै जानुहोस् त ठ्याक्कै पुगीहाल्नु हुनेछ डुवर्स। दिनभरि ब्युटी पार्लरमा अनुहारहरू सिहार्दा सिङ्गार्दा कुपोषणले कुच्चिएका आफ्नै आमा-बाबा अनि भाइ- बहिनीका अनुहारहरू झलझली सम्झने ती युवतीहरू घर फर्कन्दा तिनीहरूलाई पछ्याउँदै पछ्याउँदै जानुहोस् त ठ्याक्कै पुगीहाल्नु हुनेछ डुवर्स। राति खेतमा जङ्गली हात्तीहरू पसेदेखि मिर्मिरे बिहानसम्म सोमरा,सोमबहादुर,मङरा र मनबहादुरहरू एक भएर हात्ती खेदाइरहेको बेला न्यानो ओछ्यानमा मस्त निदाउने नेताहरू जहाँ विभाजनको राजनिति गर्छन् हो ssss ठीक त्यहीँ पर्छ डुवर्स। भोकाएको आफ्नो नानीलाई स्तनपान गराउन मेलोबाट क्रेस घर पुगेकी गोर्खाली आमा स्तनपान गराइराख्छिन् भोकले रोइरहेको आदिवासी नानीलाई पनि त्यसै गर्छिन् आदिवासी आमा पनि दुधको सम्बन्ध गाँसिएको छ जहाँ हो ठिक त्यहीँ पर्छ डुवर्स। नलगाएको कहाँ हो र तैँले आगो नसल्काएको कहाँ हो र तैँले डढेलो लगा आगो लगाउँछस् जति सल्का डढेलो सल्काउँछस् जति कान खोलेर सनीराख् ए सैँदुवा खरानीबाट पनि फिनिक्सजस्तै बौरिएर युद्ध लडने बीर योद्धाहरूको बास छ जहाँ हो ठिक त्यहीँ पर्छ डुवर्स। *** ४. जम्ले मोराहरू कुन धनबहादुर हो? कुन हो मनबहादुर ? छुट्याउन त सकिन्दै सकिन्दैन हुन पनि यी जम्ले मोराहरू काटीकुटी एकै छन् भाषा लुगाफाटा खानपान सबैसबै एकै छुट्टयाउन खोज्नेहरूको निम्ति यी जम्ले मोराहरू एउटा समस्या बनेर रहीदिन सक्छन् तर विडम्बना ! छुट्टयाउन खोज्नेहरूको निम्ति समाधान भइदिँदै आफ्नै निम्ति चै समस्या बन्दै यी जम्ले मोराहरू छुटिन्छन् अनि मनबहादुर भन्छन् म धनबहादुर होइन म मनबहादुर हूँ अनि धनबहादुर पनि भन्छन् म धनबहादुर हूँ म मनबहादुर होइन। *** ५. लाञ्छनाको सिरेटो देशको सिमानामा विदेशतिरबाट आएको गोलीले शहिद हुॅदा धनमती र मनबहादुरका छोराहरूलाई तिरङ्गा ओड़ाएर पठाउनेहरू हो नलानु फर्काएर त्यसलाई । ओड़न पाओस् न धनमती र मनबहादुरहरूले पनि देशको न्यानो माया तिनीहरूलाई नै ताकेर जबजब चल्छ देशभित्रबाटै देशलाई मायागर्ने तिनीहरूको मुटु कमाउने विदेशीको लाञ्छनाको सिरेटो । *** ६. दलालहरू स्वार्थको मैला झोलामा हाले सपना अऩि शहिदहरूका आलोआलै चिहानहरू टेक्दैटेक्दै गए दलालहरू  | खोले टोपी शिरको गुटमुटाए त्यसमा स्वाभिमान अनि आमाको छाती र बाबुको शिर कुल्चन्दैकुल्चन्दै गए दलालहरू | अदूरदर्शीताको चुहुने झोलामा हाले वर्तमानलाई अनि भावी सन्तानका निधारहरू टेक्दैटेक्दै गए दलालहरू | *** ७. बाडुली यो देशमा सबैलाई भन्दा कम्ती बाडुली मलाई लाग्छ । हुन पनि हत्तपत्त देशले मलाई सम्झिन्दैन । रगतको खाँचो पर्दा मात्र देशलाई मेरो याद आउँछ । बाडुली लाग्दै पछि रगतबगाउने मेरै तर यही देशमा वास खोसिएको छ इतिहास छोपिएको छ। मसँगको रगतको साइनो केलाउँला कुनै दिन देशले मलाई माया गरेर सम्झेला कुनै दिन देशले । *** ८. अरूको बन्दुक र बीरबहादुर त्यो बन्दुक बीरबहादुरको थिएन न ती युद्धहरू न त ती दुश्मनहरू नै  उसका थिए अरूकै   युद्धमा अरूकै   बन्दुकले अरू कै  आदेशमा अरूकै  दुश्मनहरूलाई जब प्रथम चोटि उसले गोली ठोक्यो कुटिल ती अरूहरूले प्रशंसाको मार्तोले कुटिलताका काॅटीहरू ठोके बीरबहादुरको निधारमा हत्केलाहरूमा पैतालाहरूमा त्यसपछि ऊ अचल बन्यो अचल ऊ कतै जान सकेन कहीँ पुग्न सकेन तर अचल उसलाई जताततै  पुराइयो उसको गाउॅदेखि सुदूर बिरानो ठाउॅमा उ बेनाम पुरिएको चिहानमा पनि उसलाई पुराइएको थियो वास्तवमा सोझो र सुधो बीरबहादुरको कुनै दुश्मन नै थिएन कुनै दुश्मन नै नभएको उसलाई बन्दुकको आवश्यकता नै थिएन आवश्यकता नै नहुॅदा उसले बन्दुक आविष्कार गरेको इतिहासै छैन अरूले नै लेखेको इतिहासमा तर उसले बन्दुक पडकाएको इतिहास छ कुटिलताको कलमले लेखेको कतै उसको नाम छ कतै ऊ बदनाम छ । *** ९. इनजोइ दि दार्जिलिङ टी अपत्यारिलो न अपत्यारिलो मंहगो न मंहगो दाममा किन्न भएको छ हजुरले त्यो दार्जिलिङ टी पत्यारै नलाग्ने कम्ती न कम्ती चियाबारी श्रमिकहरुको दैनिक हाजिरा खै, के सुनाउँ म हजुरलाई ? यहाँ चियाबारी बसाल्न हिंस्रक जीवजन्तुहरू धपाउँदै पटेर जङ्गलहरू फाँड्नथालेदेखि आजसम्म अभाव र अपुगकका बाघ भालुहरूसँग निरन्तर निरन्तर लड्न परेको कथा खै, के सुनाउँ म हजुरलाई ? विश्व-प्रसिद्ध त्यो स्वाद कै निम्ति न हो किन्न भएको छ हजुरले त्यो दार्जिलिङ टी चियाबारी श्रमिकहरुको नुनिलो आँशु खै,के घोलूँ म त्यसमा ? देखेकै हुनपर्छ हजुरले पक्कै पनि कतै न कतै दक्ष फोटोग्राफरहरूले खिचेका चियाबारीका सुन्दर तस्वीरहरु मैले मेरै आँखाले खिचेका चियाबारीका विभत्स तस्वीरहरु खै, के देखाउँ म हजुरलाई ? मूड चंगा बनाउनलाई नै न हो किन्न भएको छ हजुरले त्यो दार्जिलिङ टी मूडैबिगार्ने चियाबारीका व्याथाहरू अझै कति सुनाउँ म हजुरलाई ? आsss छोड्नुहोस् यी सब कुराहरू इनजोइ दि दार्जिलिङ टी । *** १०. हाम्रो  सपना तिमीले हामीलाई गाजर देखायौ तर त्यो  गाजर भन्दा कता हो कता स्वादिष्ट छ हाम्रो सपनाको स्वाद यसैले त तिमीले हामीलाई देखाएको गाजरलाई हामीले हाम्रो घोप्टो बुढी औंला देखाइदिएका छौं/देखाइरहने छौं गाजर पछि तिमीले हामीलाई तिम्रो लौरो देखायौ हाम्रो  सपनालाई कुट्दा तिम्रो लौरो भांचिएको इतिहास छ तर हाम्रो  सपना  भांचिएको इतिहास छैन हुंदैन पनि कारण तिम्रो  लौरो भन्दा कता हो कता बलियो  छ हाम्रो सपना । तिमीले बन्दुक पनि पडकायौ तर त्यो बन्दुक पडकिॅन्दाको आवाज हाम्रो आवाजको भीडभित्र खै कता हरायो कता ? यसैले त चारैतिर सुनिन्दैछ हाम्रो  आवाज केवल हाम्रो आवाज सुन्दैछौ के ? सम्पर्क 

सा हि त्या क्ष र 
2024 डिसेंबर प्रादेशिक बोली

गुलांचो कुमारी की कवितायें

परिचय जन्म तिथि -२३/०८/१९८८ जन्म स्थान -झारखंड , जिला रामगढ़, गांव  रोला , एक सामान्य कृषक कुड़मि (महतो) परिवार में । माताजी का नाम -श्रीमति रशमी देवी,पिताजी का नाम – श्री भुनेश्वर महतो(मुत्तुरवार गुष्टी),पति – श्री दिनेश्वर महतो(टिडुआर गुष्टी(टोटम) ) संतान : स्नेहा रानी,दीक्षा दानी,छवी पानी,दुर्गेश नंदन ‘टिडुआर  ‘(पुत्र) शिक्षा  :- १.बोर्ड (माध्यमिक)-एस.एस .हाई स्कूल गोला। २.इंटर – महिला महाविद्यालय, हजारीबाग। ३. बी.ए (हिन्दी प्रतिष्ठा) -महिला  महाविद्यालय, हजारीबाग। ४. एम.ए.(हिंदी) – विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग। ५. नेट–   युजीसी नेट-२०१७, ६ . नेट- जेआरएफ -युजीसी सीबीएसई -२०१८, ७.बी.एड– एस .बी .एम बीएड डिग्री कॉलेज, हजारीबाग। ८. जे-टैट – झारखंड सरकार द्वारा आयोजित -2018,९. पी.एचडी – विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग | शोध निदेशक –“डॉ सुबोध सिंह शिवगीत”, कदमा, हजारीबाग। प्रकाशित रचनाएँ- (क)मौलिक साहित्य–  १. ‘ मैं पाप क्षितिज से हार गई’ , (कविता संग्रह) २०२२ , रश्मि प्रकाशन लखनऊ, उत्तर प्रदेश। २. ‘कविता हामर सोक नाय २०२३ (खोरठा काव्य संग्रह) ब्राइट पब्लिकेशन, मध्यप्रदेश। ३ . बाहर से ही लौट गए २०२४ (काव्यसंग्रह ) ४. सामुहिक संकलन –खोरठा कविता में –‘जुरगुड़ा ‘ब्राइट पब्लीकेशन मध्यप्रदेश। ५. पत्र-पत्रिकाओं में शोध आलेख –१. .’साहित्यलोक’ –(भाषा, साहित्य ,संस्कृति और साहित्यिक सिध्दांत की अनुसंधान शोध पत्रिका ) केन्द्रीय हिन्दी विभाग, त्रिभुवन विश्वविद्यालय कीर्तिपुर, नेपाल के संगोष्ठी विशेषांक में प्रकाशित। २. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में राम और रामायण का स्वरूप ‘सेमिनार विशेषांक ‘ पुस्तक में आलेख “रमणिका गुप्ता की कहानियों में स्त्री (२०२१)  ’झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा पत्रिका ‘रांची से प्रकाशित। प्रथम खोरठा कविता प्रकाशन –‘मांय लय दे मोबाइल ‘20अगस्त 2021’प्रभात खबर, झारखंड के माय माटी कालम’ में।तब से लगातार खोरठा कविताएं प्रकाशित होती रही हैं – प्रभात खबर,’कोलफिल्ड मिरर’ ‘संध्या प्रहरी ‘ ‘अखड़ा ‘ ‘ झार न्यूज ‘ ,सेवन टाइम्स ‘, ‘आदिवासी’, प्रसिद्ध पत्रिकाओं में।   झारखंड सरकार के जन संपर्क विभाग, रांची से प्रकाशित पत्रिका “आदिवासी”के अंक 360में ,’आदिवासी कहानियां और कहानीकार २०२२ से संबंधित आलेख प्रकाशित। स्मारिका में साहित्यकार परिचय और एक कविता प्रकाशित। सम्मान:- १.  ‘शोध संवाद फाउंडेशन नई दिल्ली ‘ द्वारा विशिष्ट शोध आलेख सम्मान 2021से सम्मानित। २ . हिंदी कविता लेखन के लिए ‘विश्व हिंदी लेखिका मंच ‘दिल्ली द्वारा –‘नारी गौरव सम्मान ‘एवं ‘ नारी सक्ती सागर’ सम्मान से सम्मानित। ३‘त्रिभुवन विश्वविद्यालय, ’नेपाल’ , के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘में स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया। ३.  हिंदी साहित्य संस्कृति एवं राष्ट्रभाषा के उन्नयन एवं संचयन के लिए ‘साहित्य संचय संवाद फाउंडेशन ‘, द्वारा _’भारत -मलेशिया गौरव सम्मान’ से सम्मानित। ४. विश्व साहित्य सेवा संस्थान द्वारा साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन में योगदान हेतु “विश्व साहित्य शिखर सम्मान २०२३ “से सम्मानित। ५. इंडोनेशिया सम्मान २०२४से सम्मानित। ६. ‘तृतीय साहित्य महोत्सव प्रयास’ में स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया । शोध पत्र प्रस्तुत – १. शोध संवाद फाउंडेशन नई दिल्ली एवं जानकी देवी विश्व विद्यालय, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, दिल्ली में। २.शोध संवाद फाउंडेशन, नई दिल्ली एवं त्रिभुवन विश्वविद्यालय,नेपाल के हिंदी संकाय विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, नेपाल में। ३.दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन मलेशिया में। साहित्यिक विदेश यात्रा – १. पांच दिवसीय नेपाल यात्रा- २०२२, २. दस दिवसीय मलेशिया यात्रा-२०२३, ३. इंडोनेशिया और वियतनाम यात्रा -२०२४ विशेष:- १. भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय  के अधिन साहित्य अकादमी नई दिल्ली में, कुड़माली व खोरठा भाषा का प्रतिनिधित्व करते हुए,काव्य पाठ। २ .  श्रीक्षेत्र राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव, ओड़िशा में, अतिथि साहित्यकार के रूप में सामिल। संप्रति – PGT शिक्षक (हिंदी )उत्क्रमित +2उच्च विद्यालय खपिया, डाड़ी, हजारीबाग, ( झारखंड सरकार) वर्तमान में पदभार – १ .अखिल भारतीय कुरमी महासभा की जिला कोषाध्यक्ष, २   हजारीबाग इकाई , झारखंड  साहित्य अकादमी संघर्ष समिति की जिला अध्यक्ष।,३. झारोटेफ की जिला सह सचिव (महिला प्रकोष्ठ) संपर्क -चरही, हजारीबाग, झारखंड। गुलांचो कुमारी की कुड़मालि कविता १. दादुर कोहे जेठ असाड़ेंबिहिन छिंटि लहअ लहअ हेरिआरि  टर टर दादुर कोहे ऑंइख फुटाइ निहि पोड़ी गेलअ खेत जोभि भादरअ मासें अबरि मॅंञ थिरअ करि चित मगज मारि मारि जतेक जनि, ततेक काथा  मन भभकें बइहारे कथिक बुताइं रहता लोक दादुर कोहे ऑंइख फाड़ि (इस कविता में मेढ़क सुखाड़ की स्थिति में किसानों का दुख व्यक्त कर रहा है।दादुर कोहे का अर्थ -मेढ़क बोल रहा है ) *** २. सॅंञा गेला भुइल मर सॅंआक भिनु बाथान खेत गठ गांव छड़ि सहर टांञ लेहत ठर ठेकान फुटअल गटे पिरिति फुल मधु मासे मञ बेआकुल कॉस बने कॉंस डले हिआ उथल अ पाथल मारे बहे नदि कुल -कुल केइसे राखअबं जिआ कुल कथिक जालाञ ,उधरा फिकिरें संइञा गेला मके भुइल ? (यह वियोग श्रृंगार रस की कविता है। शीर्षक – पिया मुझे भूल गए हैं) *** ३. ढेकि जखअन सास ,  ढ़ेकि कुटेक लहत नाम सच कहेइहअ माञ सुनि  जाहउ जिउ फाइट आधा राति अचके  सॅंञा दहत डॉइट खाटिक भितुर धकलि माञ गअ दहत भुंञे सॉइट ढॉकचुइं ढॉकचुइं जखन हेउअइ  हॅंइड़सारे सास कहे लागहत उसकाउए चॉंड़े चॉंड़े अखरा हिंसकाइल आहात सांझ-बिहान कुटि ढ़ेकि नॉउआ मदाड़ि  मञ भेक भय जाहि लेकि कांड़िञ हाथ देंथिं कलअजा जाहउ फेकाइ सॉंभरेक चोटें उखइर लेखे जाहि छेंछाइ छटकि ननद मर बड़ि चलनगइर  चॉंड़े चॉंड़े ढ़ेकि कुटि लगाइ देहत चाउरेक ढेइर चाउरेक डिंग देखि ढरकेइ ऑंखिक लर एसन घारे किना देखि खजल रहें बर ! एगरेजि इसकूले पढ़ाइ राखलें चासा से फाराके बिहा देउएक बेरा माञ गअ आँचरे बांइध देले लेका बर भीतर खॉधाइ चाइरअ दिगे थेचकलाहे खॉंचा बॉंइध डेमनि काचा पइसा मांगे गेले बनि जात सभे मेमनि एक किटि  जिउ माञ सबुर करउ नाहि जिनगि काटबउ कइसे किछु बुइध उरिआउ नाहि (ढेकि एक औजार है जिसके द्वारा हम धान कुटकर चावल निकालते हैं। कविता में एक पढ़ी-लिखी लड़की का दुख उजागर किया गया है, जो वह अपने ससुराल में झेलती है ) *** ४. नेगाचार बुता नि रहले केथिक मरद पुता नि हेले केथिक माञ चासा नि उठले केथिक बरद  नि धेनुआले केथिक गाय बरदेक बुते खेति उठे थानेक बले बाछुड़ गाय अरंडी पातेक सेंकें अलवाति राड़ेक बुते बासमति माञ पुरखा निखा कोहि गेला – कॅंटि देखि बाप कॉंदे कॅंटा देखि हॅंसे माञ मटा देखि जनि हॅंसे पेट देखि कॉंदे माञ तअ, केथिक जालाञ किनाले ऑंइ बॉंइ पुरखा थथि सॅंचा भाभा आपन चरखॉइ देहाक तेल छड़ा परेक थथि छभ परकिरतिक बुताञ चला भाइ  परकिरतिके बुताइं डंड़ाइल आहे हामिनक गटा नेगाचार ..! ( यह कविता ब्राह्मण वाद का विरोध और प्रकृति वाद का समर्थन करती है। ) *** ५.

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