2024 डिसेंबर प्रादेशिक बोली

गुलांचो कुमारी की कवितायें

सा हि त्या क्ष र 

जन्म तिथि -२३/०८/१९८८

जन्म स्थान -झारखंड , जिला रामगढ़, गांव  रोला , एक सामान्य कृषक कुड़मि (महतो) परिवार में ।

माताजी का नाम -श्रीमति रशमी देवी,पिताजी का नाम – श्री भुनेश्वर महतो(मुत्तुरवार गुष्टी),पति – श्री दिनेश्वर महतो(टिडुआर गुष्टी(टोटम) )

संतान : स्नेहा रानी,दीक्षा दानी,छवी पानी,दुर्गेश नंदन ‘टिडुआर  ‘(पुत्र)

शिक्षा  :- १.बोर्ड (माध्यमिक)-एस.एस .हाई स्कूल गोला। २.इंटर – महिला महाविद्यालय, हजारीबाग।

३. बी.ए (हिन्दी प्रतिष्ठा) -महिला  महाविद्यालय, हजारीबाग। ४. एम.ए.(हिंदी) – विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग।

५. नेट–   युजीसी नेट-२०१७, ६ . नेट- जेआरएफ -युजीसी सीबीएसई -२०१८, ७.बी.एड– एस .बी .एम बीएड डिग्री कॉलेज, हजारीबाग।

८. जे-टैट – झारखंड सरकार द्वारा आयोजित -2018,९. पी.एचडी – विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग |

शोध निदेशक –“डॉ सुबोध सिंह शिवगीत”, कदमा, हजारीबाग।

प्रकाशित रचनाएँ- (क)मौलिक साहित्य– 

१. ‘ मैं पाप क्षितिज से हार गई’ , (कविता संग्रह) २०२२ , रश्मि प्रकाशन लखनऊ, उत्तर प्रदेश।

२. ‘कविता हामर सोक नाय २०२३ (खोरठा काव्य संग्रह) ब्राइट पब्लिकेशन, मध्यप्रदेश।

३ . बाहर से ही लौट गए २०२४ (काव्यसंग्रह )

४. सामुहिक संकलन –खोरठा कविता में –‘जुरगुड़ा ‘ब्राइट पब्लीकेशन मध्यप्रदेश।

५. पत्र-पत्रिकाओं में शोध आलेख –१. .’साहित्यलोक’ –(भाषा, साहित्य ,संस्कृति और साहित्यिक सिध्दांत की अनुसंधान शोध पत्रिका ) केन्द्रीय हिन्दी विभाग, त्रिभुवन विश्वविद्यालय कीर्तिपुर, नेपाल के संगोष्ठी विशेषांक में प्रकाशित। २. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में राम और रामायण का स्वरूप ‘सेमिनार विशेषांक ‘ पुस्तक में आलेख “रमणिका गुप्ता की कहानियों में स्त्री (२०२१)  ’झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा पत्रिका ‘रांची से प्रकाशित।

प्रथम खोरठा कविता प्रकाशन –‘मांय लय दे मोबाइल ‘20अगस्त 2021’प्रभात खबर, झारखंड के माय माटी कालम’ में।तब से लगातार खोरठा कविताएं प्रकाशित होती रही हैं – प्रभात खबर,’कोलफिल्ड मिरर’ ‘संध्या प्रहरी ‘ ‘अखड़ा ‘ ‘ झार न्यूज ‘ ,सेवन टाइम्स ‘, ‘आदिवासी’, प्रसिद्ध पत्रिकाओं में।  

झारखंड सरकार के जन संपर्क विभाग, रांची से प्रकाशित पत्रिका “आदिवासी”के अंक 360में ,’आदिवासी कहानियां और कहानीकार २०२२ से संबंधित आलेख प्रकाशित।

स्मारिका में साहित्यकार परिचय और एक कविता प्रकाशित।

सम्मान:-

१.  ‘शोध संवाद फाउंडेशन नई दिल्ली ‘ द्वारा विशिष्ट शोध आलेख सम्मान 2021से सम्मानित। २ . हिंदी कविता लेखन के लिए ‘विश्व हिंदी लेखिका मंच ‘दिल्ली द्वारा –‘नारी गौरव सम्मान ‘एवं ‘ नारी सक्ती सागर’ सम्मान से सम्मानित। ३‘त्रिभुवन विश्वविद्यालय, ’नेपाल’ , के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘में स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया। ३.  हिंदी साहित्य संस्कृति एवं राष्ट्रभाषा के उन्नयन एवं संचयन के लिए ‘साहित्य संचय संवाद फाउंडेशन ‘, द्वारा _’भारत -मलेशिया गौरव सम्मान’ से सम्मानित। ४. विश्व साहित्य सेवा संस्थान द्वारा साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन में योगदान हेतु “विश्व साहित्य शिखर सम्मान २०२३ “से सम्मानित।

५. इंडोनेशिया सम्मान २०२४से सम्मानित। ६. ‘तृतीय साहित्य महोत्सव प्रयास’ में स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया ।

शोध पत्र प्रस्तुत

१. शोध संवाद फाउंडेशन नई दिल्ली एवं जानकी देवी विश्व विद्यालय, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, दिल्ली में।

२.शोध संवाद फाउंडेशन, नई दिल्ली एवं त्रिभुवन विश्वविद्यालय,नेपाल के हिंदी संकाय विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, नेपाल में।

३.दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन मलेशिया में।

साहित्यिक विदेश यात्रा –

१. पांच दिवसीय नेपाल यात्रा- २०२२, २. दस दिवसीय मलेशिया यात्रा-२०२३, ३. इंडोनेशिया और वियतनाम यात्रा -२०२४

विशेष:-

१. भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय  के अधिन साहित्य अकादमी नई दिल्ली में, कुड़माली व खोरठा भाषा का प्रतिनिधित्व करते हुए,काव्य पाठ। २ .  श्रीक्षेत्र राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव, ओड़िशा में, अतिथि साहित्यकार के रूप में सामिल।

संप्रति – PGT शिक्षक (हिंदी )उत्क्रमित +2उच्च विद्यालय खपिया, डाड़ी, हजारीबाग, ( झारखंड सरकार)

वर्तमान में पदभार –

१ .अखिल भारतीय कुरमी महासभा की जिला कोषाध्यक्ष, २   हजारीबाग इकाई , झारखंड  साहित्य अकादमी संघर्ष समिति की जिला अध्यक्ष।,३. झारोटेफ की जिला सह सचिव (महिला प्रकोष्ठ)

संपर्क -चरही, हजारीबाग, झारखंड।

१. दादुर कोहे

जेठ असाड़ेंबिहिन छिंटि

लहअ लहअ हेरिआरि

 टर टर दादुर कोहे

ऑंइख फुटाइ निहि

पोड़ी गेलअ खेत जोभि

भादरअ मासें अबरि

मॅंञ थिरअ करि चित

मगज मारि मारि

जतेक जनि,

ततेक काथा 

मन भभकें बइहारे

कथिक बुताइं रहता लोक

दादुर कोहे ऑंइख फाड़ि

***

२. सॅंञा गेला भुइल

मर सॅंआक भिनु बाथान

खेत गठ गांव छड़ि

सहर टांञ लेहत ठर ठेकान

फुटअल गटे पिरिति फुल

मधु मासे मञ बेआकुल

कॉस बने कॉंस डले

हिआ उथल अ पाथल मारे

बहे नदि कुल -कुल

केइसे राखअबं जिआ कुल

कथिक जालाञ ,उधरा फिकिरें

संइञा गेला मके भुइल ?

३. ढेकि

जखअन सास ,

 ढ़ेकि कुटेक लहत नाम

सच कहेइहअ माञ सुनि 

जाहउ जिउ फाइट

आधा राति अचके

 सॅंञा दहत डॉइट

खाटिक भितुर धकलि माञ गअ

दहत भुंञे सॉइट

ढॉकचुइं ढॉकचुइं जखन

हेउअइ  हॅंइड़सारे

सास कहे लागहत

उसकाउए चॉंड़े चॉंड़े

अखरा हिंसकाइल आहात

सांझ-बिहान कुटि ढ़ेकि

नॉउआ मदाड़ि  मञ

भेक भय जाहि लेकि

कांड़िञ हाथ देंथिं

कलअजा जाहउ फेकाइ

सॉंभरेक चोटें

उखइर लेखे जाहि छेंछाइ

छटकि ननद मर

बड़ि चलनगइर

 चॉंड़े चॉंड़े ढ़ेकि कुटि

लगाइ देहत चाउरेक ढेइर

चाउरेक डिंग देखि

ढरकेइ ऑंखिक लर

एसन घारे किना देखि

खजल रहें बर !

एगरेजि इसकूले पढ़ाइ

राखलें चासा से फाराके

बिहा देउएक बेरा माञ गअ

आँचरे बांइध देले लेका बर

भीतर खॉधाइ चाइरअ दिगे

थेचकलाहे

खॉंचा बॉंइध डेमनि

काचा पइसा मांगे गेले

बनि जात सभे मेमनि

एक किटि  जिउ माञ

सबुर करउ नाहि

जिनगि काटबउ कइसे

किछु बुइध उरिआउ नाहि

***

४. नेगाचार

बुता नि रहले

केथिक मरद

पुता नि हेले

केथिक माञ

चासा नि उठले

केथिक बरद

 नि धेनुआले

केथिक गाय

बरदेक बुते

खेति उठे

थानेक बले

बाछुड़ गाय

अरंडी पातेक

सेंकें अलवाति

राड़ेक बुते

बासमति माञ

पुरखा निखा कोहि गेला –

कॅंटि देखि बाप कॉंदे

कॅंटा देखि हॅंसे माञ

मटा देखि जनि हॅंसे

पेट देखि कॉंदे माञ

तअ, केथिक जालाञ

किनाले ऑंइ बॉंइ

पुरखा थथि सॅंचा भाभा

आपन चरखॉइ देहाक तेल

छड़ा परेक थथि छभ

परकिरतिक बुताञ चला भाइ

 परकिरतिके बुताइं डंड़ाइल आहे

हामिनक गटा नेगाचार ..!

***

५. हारउआ 

नि तअ मुड़े टपि

नि तअ हाथे घड़ि

नि तअ गड़ें जता

नि तअ गातें ऑंगा

हांठु तड़िक धति

कांधे फाटल गामछा

आर काड़ा बरदें चासा

एहे आहेइक झारखनडि

हारउआ कर चिनहल दसा।

***

६. कहबेहे गअ हुजुरे

किछु एसन पुजा पासा हेतिक तअ

कहबेहे गअ हुजुरे…

जकरा राखल बादे मञ

जाति पाति ले छुटि जाम

भेदभाव कर जालाञ नि बाझम

गरिबि टि घार नि ढुकति

भरसटाचार टा मेटाञ जात

अनधबिसअस ले फराके रहब

बेरजगारि टि सिराइ जाति

मर जरे अनयाइ नि भेअत..!

***

७. सबुत

तॅंइ पुछेहें,

कनअ बाठे चिसि राखल आहात

राड़ गिला निजेक इतिहास

तअ सुन,

कुड़मिराक  थथि

पथि खजले नाहि

खेतिइं कड़ले जानबे

 पुरखा हामर बेजाइं भुंइकड़

 भुइं कड़ि तपि राखला हड़ चिना

आजि धानेक बान गाड़ि

डिनि माएक डहर खजि देलि

 बइहार खेते पंचाटि नेग के

 बुदाइॅं बुदाइॅं रपि मरलि

आजा टांइड़ टिकुर खांड़ि

 हार जुआठ कड़ि देल

 हाथ पकड़ि बाप मके

 करहा उपर चघाइ गेल

***

८.पुरनमासि चॉंद

ढेपचु ढेपचुंइ चुरचुर गाछे बले

पिरितेक सिअल पुथान

कले कले खोले

मधुमासेक हुमदुमि 

गाछेक फुल पाते

सुगा सुगि के मने

पिरितिक फुल फुटे

सुगिके लाल चोंचें सुगा

ठोटकि पुचकारे जखन

तखॅंन सॅंञा मंए जरि उठहों डॉंहे

जखन सुगि लाजे मरि

 लुकाहि पुटुस झुड़े

तखॅंन सॅंञा मर जीव टा

पुलुर पुलुर उथाथाहि पुलके

हाथेक आड़े जखन तखन

अमासेक चांद नुकाए

तंञ पुरनमासि संञा

कहिओ नि नुकाए..!

***

. कुंवारे डहर ताकहि

नचनि पहाड़ेक मथनिया चघि

तरे चाहइस आहों

तरे चाहइत रहबों

जहिया ले कहलें

मन तरे ठिन

चटाइन लखे गइड़ गेल

आस देखि देखि

आध जिनगि पड़ि गेल

पेंदलि तंअ आस दय

कचाक लभें भेले मुदय

ऑंखिक लर ढरकि ढरकि

गटा छाति भिंजि गेल

गढ़ा ढढ़ाइं गअटे धनि

तअरे खजि भुलहि

भुख पिआसेक ठेकान नाहि

छुछा नुन पानि ढोंकहि

गेंठि कांदा खाइ बुचु

गटे बन भटकहि

ऑंइख दिदअक अके आस

आइजउ तंय रानि

तअर इआद में अखनो

कुंवारे डहर ताकहि।

***

१०. सिघनचटि बअहु

मर बड़कि बेहु चलनगरि
तड़ा तड़ि आनलि साग तड़ि
अधन चघाइ,चाउर मेराइ
साग राधंलि हड़बड़ाइ
काम करहिस चाॅंड़ा चॉंड़ी
पानि लानहिस गगड़ा उठाइ
खॉंड़ा माॅंजि देलि तेंगड़ि
मझलि बेहु के अनस नाहि
पेकचि कड़ि ,राखलि निकाइ
कोइ काम खेंचा नाहि छड़हि
हाॅंसि खेलि सब काम करहि
मकिन छटकि बेहु टि के
बेजाइ बेकार दसा
हेकि जानि सिघनचटि..!
कोइ बुताक काम नाहि जानि
मञ कहलों,
जाॅंइ बेहु, डाड़ि टि ले पानि आनबे
घलटि रहलि हुन्हिं पटाइ
घार लेसिस लेसरि लेसरि
तकर जालांइ उथलि उठे
भुंए भइर सुपलि पपड़ि
किछु कहे गेले ..
रूसि ढकना भेइ जाहि
नि कहले अकर घारेक
चासा केसे भेवत ?
मञ सॅंचि भाभहों ..
एकर दिन कएसेकुन ठेलाइत ..!

***

हिंदी भाषा झारखंडी कुड़मालीपुरुलिया कुड़माली
मेरा नाम अघनु है।मर नाम अघनु हेकि।आमार/ हामार नाम अघनु बठ्ठे ।
तुम कैसे हो ?तँइ केसन आहिस ?तूईं केमन आछिस ?
मैं ठीक हूँ।मँइ बेस आहँ।अमी/ हामी भालो आछि ।
क्या?किना?कि ?
कौन?कन?के ?
क्युं?किना लागिकेने ?
कैसे?केसन?केमन ?
यहां आ।इँहा आउएँ।एईठिन आए ।
मैं घर जा रहा हूँ।मँइ ढिड़हा सझाहँ।अमी/ हामी घर जाछी ।
मैने खाया है।मँइ नुड़लँ।आमी/ हामी खायांछी।
मैने खाया था।मँइ नुँड़लाहँ।आमी/ हामी खायां रही।
मैं जाउंगा।मँइ जाम/जाप।अमी/ हामी जामू।
हम दोनो जाते हैं।हामरा दुइअ जाइहअ।आमरा/ हामरा दुलोक जाछी।
तुम जाते हो।तँइ जाइस।तोराह जाछ।
तुम लिख रहे हो।तँइ चिसेहिस।तोराह लेखछ।
तुम आना।तँइ आउए।तोराह आसवे।
हम लिख रहे हैं।हामे चिसअहँ।हामरा लेखछी।
हम लिखे हैं।हामे चिसल आहँ।आमरा/ हमरा लेखियांछी।
वह आता है।अँइ आउएइस।ऊ अस्छे।
वह जा रहा है।अँइ जाइस।ऊ जाछे।
वह आ रहा था।अँइ आउएहेलाक।ऊ आस्ते रहे।
वह खेलेगा।अँइ खेलतउ।ऊ खुलबेक।
वे रोटी खाये हैं।अँइ रटि नुड़लाहे।अराह रूठी खायांछेन।
वे गयें।अखरा गेलाअराह गेलेन।
वे घर जायेंगे।अँइ घार उजातउ।अराह घर जाबेन।

******

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प्रत्यक्षतः उनका हिंदी में पहला कविता संग्रह ‘पर्णसूक्त’ न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित होकर आया है । संग्रह की कविताओं से गुजरते हुए मुझे महसूस हुआ कि एक मराठी भाषी संजय बोरुडे साधिकार हिंदी में भी विलक्षण साहित्य रच सकते हैं ।

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