फिर एक बार सुदामा …!
फिर एक बार सुदामा
अपने चावल लेकर
आ पहुंचा द्वारका ..
उसका नगर देखकर दांग रहना
लोगोंका उसपर हँसना
बिलकुल वैसाही जैसे पहले हुआ था ..
वह दरबारमें आया ,
सिंघासन पर कृष्ण था ही नहीं..;
मदांध सत्ता का
जहरीला पुत्र -अहंकार बैठा था..
बचा था तो सिर्फ कालयवन की क्रूरता और
कालिया का कालकूट जहर..!
अब वो देखो वहां
सुदामा पड़ा है
अहंकारसे लात खाकर
उस कोने में .
और अपनेही चावल खा रहा हैं,
अपने ही आसुओंके साथ…….!
—–संजय बोरुडे .