आठवें रंग का गुब्बारा -व्यक्तिवाद की सीमाये लांघनेवाली कविता
(विशाल अंधारे,लातूर यांच्या ‘आठवें रंग का गुब्बारा’ या हिंदी काव्यसंग्रहावर ‘साहित्यनामा’ या हिंदी अंकात आलेला रचना यांचा समीक्षालेख.साभार .-संपादक ,साहित्याक्षर )
आठवें रंग का गुब्बारा -व्यक्तिवाद की सीमाये लांघनेवाली कविता
कविताएँ मन का सहजभाव होती है। कवि की गहरी सोच आला की तड़प न ,वेदनाओं की गर्जन, शब्दों में बांधकर पाठक के मन में उतरती है।कवि के मन में मची हलचल, अस्वस्थता से बने सहजभाव कविता का अभिन्न अंग होता है आंखों से देखा कानों से सुना शरीर को बेदखल करते हुए मन ने महसूस किया भाव शब्दों की सार्थकता के साथ कागज़ पर उतर आती है तो कविताएं बनती है
नर और नारी के भेद नष्ट किए हुए शब्दों का रुप धारण किए कविता एक जन्मजात शिशु की तरह कवि के मन में प्रसव पाती है कविता का यह प्रसव कवि के लिए अपने आप में एक चुनौती होती है संवेदनक्षम मन भवताल में घटनाओं से चोट खाता है वेदनांकीत होता है तो कवि आनंदविभोर होता है इन सारी अवस्था में प्रकृती का पुरुष या स्त्रि होते हुए भी तटस्थता के साथ संवेदनक्षम मन कविताओं जन्म देता है
महाराष्ट्र के विशाल अंधारे की कविता कुछ इसी तरह मन के भावों को सहज रुप में पाठक को मिलती हैं किसी मुख्य विषय को अपना लक्ष्य ऩ बनाते हुए आठवें रंग का गुब्बारा के माध्यम से
विशाल जी की कविता पाठक को अस्वस्थ कर देती है कविताओं के हिसाब से सृजन कृती का शीर्षक साथ है सात रंगों से भरी इस प्रकृती में मनुष्य के मन में उभरने वाले न सहजभाव वही आंठवे रंग का गुब्बारा होता है इसी रंग को समेटते हुए आंठवे रंग का गुब्बारा विशाल जी ने पाठक के हाथ थमा दिया इस क़िताब की मुखपृष्ठ पर इंद्रधनुष के साथ आठ गुब्बारे का चित्र है । आंठवे रंग का गुब्बारा सबसे बड़ा गुब्बारा है ।बादल के रंग से रंगा यह आंठवा गुब्बारा मनुष्य के मन की अस्वस्थता खालीपन ओर मन संवेदना के कारण प्रतिक्षिप्त क्रिया प्रतिक्रिया के रूप में साकार करता है मुखपृष्ठ के बाद पहले ही पन्नें पर कवि विशाल जी अपने मन की पारदर्शिता को प्रकट करते है –
मैं एक सच हूं
कितना भी कुरेदो मुझे
मैं झूठ नहीं बन सकता।
कवि का स्वंय प्रति यह अटल विश्वास विचारों की उंचाई बढ़ाता है कोलकाता के अॅब्स पब्लिकेशन के द्वारा यह इस किताब की उपलब्धी पर कवि को बधाई और ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।
इस किताब का समर्पण सृजन की धारा को आगे बढ़ाता है मनुष्य के मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करने वाले शब्दों को यह कविता की किताब समर्पित है ।यह एक गौरवशाली विचारों की परंपरा है।
जिसे आगे बढ़ाते कवि विशाल जी कहते हैं –
मेरे शब्दों में बसे
आंठवे रंग को समर्पित
अपने कविता के प्रति कवि की भुमिका भी निसंदेह विचारों की प्ररेणा देनेवाली है निसर्ग के प्रती तरल अनुभव बताते हुए उत्कट प्रेमानुभव उत्कट देहानुभव के साथ अतित संवेदन प्रकट करते हुए। कवि अपने शब्दों के जरिए कहते हैं
आठवें रंग का गुब्बारा
कोई शोर था
जो दिल में दबकर
दस्तक दे रहा था।
कविता मन के भावना का अविष्कृत रुप है। फिर भी कविता का सृजन सहज नहीं है कविता का सृजन एक अंतरिक संघर्ष है ।यही बात विशाल जी प्रभावशाली शब्दों में अभिव्यक्त करते हैं यह समर्पण क़िताब में सारी प्रविष्ट कविता में भावनाओं का सम्मान है साथ में ही कवि का ये आंठवा रंग एक ऐसी भाषा का रंग है जो इंद्रधनुष के उन पंरपरागत रंगों से तालमेल बैठाते हुए समाज के एक चेहरे का एक नया रंग प्रस्तूत करने की कोशिश की है ये कहना उचित है।
इस किताब को डाॅ प्रियांका सोनी अध्यक्ष अम्रतधारा फाऊंडेशन जो वरिष्ठ साहित्यकारा के साथ समाजसेवीका भी है इनकी
प्रस्तावना प्राप्त है तो महाराष्ट्र के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ नागनाथ कोतापल्ले जी का आशिर्वचन प्राप्त है साथ ही में डाॅ पल्लवी परुलेकर, गजानन तुपे, पवन तिवारी संजय द्विवेदी आदी महानुभावो की शुभकामनाएं मिली है।
इस किताब में प्रविष्ट कविताओं को पाठक तीन अंगों से महसूस करता है।सबसे पहला है प्रेम कविता दुसरा सामाजिक कविताएं और तिसरा समाज के प्रतिबिंब का दर्शन कराते मन का खालीपन महसूस करने पर मजबूर करने वाली कविताएं ।इसका अर्थ बिल्कुल सरल है कवि स्व से समाज की और अपनी कविताओं की यात्रा करवाता है।प्रेम कविताओं में एक प्रेमी प्रेम के साथ विरह, सौंदर्य रोजाना जिंदगी की बिती खालीपन,
फुलना मिलन इन एहसासों के साथ
पाठक प्रेम की नई रीत सिखाती है प्रेम कविताओं में मुख्यत निली आंखोंवाली लड़की, तीन खत, तस्वीरें ,नज्में, किताब,प्रेम का मधूर धागा, उलझी पड़ी नज्म,धर्म की लाली,सुखी बरसात,गुलाबी निशान,चाय,तुम्हारा रुकना, तुम्हारे लौटने का ख्वाब,प्रेम मिलन आदी कविताएं हैं।
नीली आंखों वाली लड़की प्रेम कविता होते हुए भी बचपन जगाने वाली कविता है रोजाना जिंदगी जिते समय वक्त गुजर जाता है लेकिन दिल कोशिश में डूबा रहता है हाथों से निकल गये प्रेम में इंतजार का एहसास देनेवाली यह कविता समय के फलक पर प्रेम के निशान छोड़ देती है।
तीन खत इस कविता में तुम्हारा होना ही पढूंगा तुम्हारा होना ही मैं फिर से जीना चाहता हूं आशावाद से भरा प्रेम पहले दोनों ही चिठ्ठीयों को नकारकर आखरी चिट्ठी को अपनाना चाहता है।कविताओं में अलग अजीब सी कसक पाठक को छू जाती है चेहरे पर रौनक सी भरकर होंठों पर मुस्कुराहट छोड़ जाती हैं ।कम शब्द में अर्थ की गहराई समेटकर कविता में उतारना विशालजी का स्वभाव है ।धर्म जाति में बटां प्रेम प्रेमीयों को अक्सर जान गंवानी पड़ती है इसी बात को विशाल जी अपने शब्दों में कहते हैं –
बस इस प्रेम के पल को
जिने के लिए
उन्होंने अपनी जान दी
तो देनी पड़ी थी
राह देखते प्रेमी के आशावाद जानेवाली- उम्मीद- कविता जताती है प्रेम को अभिव्यक्त करने की विशाल जी अलग ढंग से कविता में उतारते हैं..
जो तुम्हारे होठों पर रुका था
और उसे अम्रुत समझकर पी गया था मैं । शाश्र्वत प्रेम को कविता का अंग जाता है।प्रेम कविताओं की तरह सामाजिक कविताएं भी विषेश रूप से पाठक को आकर्षित करती है । कलाकार हमेशा संवेदना दुख दर्द आतंक को अपने सृजन से अभिव्यक्त करता है सामाजिक कविताएं में भी पकड़ने वाली बाजारवाली गली , पोशाक,वासना का कुढ़ा, सिंदूरी श्रृंगार , पुरुष,धर्म की लाली, आजादी आदी कविताएं इस किताब में विशाल जी की है।बाजारु औरतों का सस्तापन कवि अपने शब्दों में सार्थ शब्दों में बयान करता है उसकी मजबूरी को नजरअंदाज करता है –
एक ओ खुली थी
एक किताब की तरह –
बुकस्टाल पर खरीदकर
कोई भी पढले उसे
समाज की औरतों की ओर देखने की द्रष्टी एक वस्तू के समान होती है वस्तू से बढ़कर कोई किमत पुरुष के नजरों में नहीं होती वस्तु की बजाय उसकी उपयुक्तता देखी जाती है औरत की जिंदगी भी बुक की तरहां ही होती है यह भयान वास्तव वासना का कुढ़ा इस कविता में प्रतित होता है
इस किताब में खिलौना ओर दुसरी औरत बिलकुल अलग सोच और अंदाज से आई है इस तरह की शायद ही किसी भाषा में होगी कविताएं अक्सर अपना दर्द अभिव्यक्त करने में सफलता पाती हैं लेकिन अपनी मां का दुख जानते हुए भी औरत का दुख जानना यह बात वैश्वीक विचारों को संपन्न करने वाली है
इसी बात को विशाल जी कहते हैं-
बहुत से दुख
मां के पहलू में
होकर भी मेरी नजरों से
हटी नहीं
वो दुसरी औरत
मनुष्य के जीवन में हर तरह के रिश्ते सामील होते हैं ।हर रिश्ते की अहमियत अलग होती है उसी तरह हर रिश्ते का सुख दुख बंधक अलग होता है कुछ बातें सारे रिश्ते नाते होते हुए भी खालीपन जगाती हैं । रिश्तों में अकेलापन आ जाता है यादों के निशान जिंदगी में रह जाते हैं।
लेकिन अपने दुर निकल चुके होते है। ऐसी भी कुछ कविताएं विशाल जी लिखते है ख़ोज,बांज, मां की पुकार, अधूरा ख्वाब,सुखापन ,गहरी नींद ,टेप रेकार्डर जैसी कविताएं रिश्तों की असफलता सामने लाती है।
विशाल जी की कुछ कविताएं उन्हें कविता के दुनिया का सरताज पहनाती है बुद्ध, पुरुष,वो दुसरी औरत जैसी कविताएं वैश्विकता का महान संदेश देकर व्यक्तिवाद की सिमा पार कर जाती है ।
हिंदी साहित्यकार कहते हैं की कोई किताब पहली नजर में शिर्षक से ही पाठक को आकर्षित करले और अपनी विषयवस्तु चलते पढ़ने को बाध्य करे ऐसी विशाल अंधारेजी की किताब है।अंतरमन और प्रकृती और मनुष्य के भावों को कविता जिंदा कर देती है। साथ ही कविता किताब बेमिसाल है।कवि को ढेर सारी शुभकामनाएं।कवि कलम वैश्विकता से जुड़ी रहें।इसी कामना के साथ किताब की आलोचना बड़े हर्ष से विराम देती हुं।
– रचना ,७०६६३०१९४६
कवी विशाल अंधारे -९८६०८२४८६८